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| विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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| हरेः प्रदत्तापि निजेन पिदा |
१४ |
१११
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| हा धिक् परव्यसन |
७३ |
१७३
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| हारीताः सरसं रसन्तु |
७९ |
१४१
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| हा हेम किं न तत्रैव |
९३ |
५४
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| हिमसमयो वनवहि- |
११३ |
५३
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| हृद्या नद्यः कमलसरसी |
२२ |
१८२
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| हे कोकिल क्षपय |
६४ |
१०४
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| हे दावानल शैलाग्र |
१०५ |
१०३
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| हे मानिवय तवैतदेव |
९० |
४०
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| हे मेध मानमहिनस्य |
१९ |
१५९
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| हे जिणे कटुकदेह |
१४५ |
३४
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| हे लक्ष्मि क्षनिके |
१५ |
११७
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| हेलानिदृलिय गनन्द |
३० |
५०
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| हेलोज्ञालिनकपोल |
९५ |
२०
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| विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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| हे हेलाजितधोधिसत्त्व |
९९ |
५५
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| हे हंसात्नावदम्भोरङ् |
५६ |
४०
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| होद्दित्ति रालो मुणिउण |
१३७ |
२३०
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| हंसः ण्नं द्वारदिन्दुधान |
५७ |
४६
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| हंसः जनाति कनकैः |
१४७ |
४९
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| हंसान्योक्तिः शुकान्योक्तिः |
५४ |
२३
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| हंसाः पद्मवनाशया मधु |
१३१ |
१८६
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| xxxxxxxxxx |
१०३ |
८२
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| हंसोमि नुनं सxxxxप्नोति |
५९ |
५७
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| हंसो दग्ध सगांर सर्पति |
१०७ |
११८
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| हंसो पान्थ किनाकुलः |
१११ |
३६
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| हंसो मरुस्थलनxx |
१३५ |
२१९
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| हंसो शाxxवीराः |
४८ |
७४
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| हंसो हंस महानतं |
५८ |
४९
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