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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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शुद्धप्राग्वाटवंशाम्र |
७६ |
६
|
शुद्धवंशजकोदण्ड |
१५० |
७३
|
शैत्यं नाम गुणस्तवैव |
९४ |
१२
|
शैलशिखानिकुञ्जशयितस्य |
२९ |
३४
|
शोषं गते सरसि |
२३ |
१९०
|
श्यामतया स्थूलतया |
८५ |
७५
|
श्यामतां वहतु वातु |
१८ |
१५२
|
श्रमणप्रकरैर्वन्द्य |
१०८ |
५
|
श्रियो वासोऽम्भोजे |
८४ |
६९
|
श्री इन्द्रभूतिं वसुभूतिभूतं |
२ |
१२
|
श्रीगौतमगणाधीश |
१४३ |
७
|
श्रीदातारं विश्वाधारं |
८६ |
६
|
श्रीपरिचयाज्जढा अपि |
१५ |
१
|
श्रीमच्चन्दनवृक्ष सन्ति |
११७ |
७६
|
श्रीमच्छङ्खपुरस्कार |
८५ |
१
|
श्रीमत्तपागच्छ स्वच्छ |
९३ |
७
|
श्रीमत्तपागणनभोङ्गण |
३ |
२१
|
श्रीवर्धमानः स्तात्सिद्ध्यै |
२ |
९
|
श्रीवर्धमान सर्वज्ञ |
२ |
१४
|
श्रीविजयानन्दगुरुं |
८६ |
७
|
श्रीसंयुक्तं गुणागारं |
१४१ |
३
|
श्रीसोमसोमविजया |
२ |
१७
|
श्रुत्वा कुम्भसमुद्भवेन |
१४७ |
४७
|
श्रेयः श्रियं दिशतु |
७६ |
२
|
श्रेयः श्रियं वितनुतां |
१ |
७
|
श्रेयः श्रियां विलसनो |
२५ |
१
|
श्रेयः श्रियामाश्रय |
२५ |
२
|
श्लाघ्यं कर्पासफलं यस्य |
१३८ |
२३८
|
श्लाघ्यैव नारिकेर्या |
१२८ |
१६४
|
सकललोकचकोरनिशाकर |
७६ |
३
|
सक्षारो जलधिः सरांसि |
२१ |
१६९
|
सगुणैः सेवितोपान्तो |
१०४ |
९२
|
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
|
सज्ज्ञानमञ्जुमाणिक्य |
१०८ |
७
|
सत्पादपान्विपुलपल्लव |
१४३ |
१३
|
सत्यं सत्यं मुनेर्वाक्यं |
७२ |
१५७
|
सत्साङ्गत्यमवाप्य |
६० |
७०
|
सदा मन्दमन्दस्य |
३० |
४९
|
सद्वृत्त सद्गुणमहर्घ |
१४६ |
४४
|
सद्वृत्तोऽपि सुपूर्णोऽपि |
१४९ |
६९
|
सन्त एव सतां नित्य |
३१ |
५३
|
सन्त्यन्यत्रापि वीची |
५८ |
५२
|
सन्त्यन्ये झषकेतनस्य |
९१ |
४९
|
सन्त्येव मिलिताकाशा |
११५ |
६३
|
समयवशेन यदद्य |
११९ |
९२
|
समुद्गिरसि वाचः किं |
६२ |
८७
|
समुद्रस्यापत्यं प्रथित |
१७ |
१३५
|
सरलितगलनालीं |
४१ |
३१
|
सरसि वहुशस्ताराच्छाया |
५५ |
३३
|
सर्वधर्मोपदेष्टारं |
१४२ |
६
|
सर्वाशापरिपूरिहुंकृति |
७७ |
१५
|
सर्वासामपि नारीणां |
१५ |
१२१
|
सर्वास्तुम्व्यः समकटुरसाः |
१४१ |
२५४
|
सर्वे वनस्पतिकायाः |
४ |
२९
|
सर्वेषामपि वृक्षाणां |
१३३ |
२००
|
सव्वेसि तुमं पावेसि |
५९ |
६०
|
सहकारे चिरं स्थित्वा |
६२ |
८८
|
सांप्रतं सुखवोधाय |
१०८ |
८
|
सा तादृक्षनृभक्षलक्ष |
१२० |
१०२
|
साधारणतरुवुद्ध्या |
११७ |
७८
|
साधु साधु कृतं मौनं |
६३ |
९१
|
सामान्यपादपान्योक्तिः |
१०८ |
१०
|
सामान्यभूधरान्योक्तिः |
८६ |
९
|
सामोपायनयप्रपञ्च |
२८ |
३२
|
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