पृष्ठम्:अग्निपुराणम्.pdf/८९

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अग्निपुराणे [१३५ अध्यायः । वन में पानय भी रक्ताधि चूर्णय भूमि पातय भी थिरीमा चक्षु लय श्री सतपादो या मुद्रा स्फोटय भी फट भी विदारय ओंधिशूलेन च्छेदय पो बजेय न श्री दोन ताडय२ चने ण छेदयर प्रो शया भेदय दंष्टया कौलय भी ककिया पाटय ओं प्रङ्गीन एसपी शिरोखिजरमै काहिक शाहिक बाहिकचातुर्थि के डाकिनीस्कन्दग्रहान मुश्च मुच प्रों पच श्री उत्सादय भी भर्मि पानय ओं रही बयालि एहि श्री माहेश्वरि एहि प्रो कौमारि एहि औं वैधावि रहिनों धाराधि पहिओं एन्द्रि एहि श्री चामुण्डे एहि ओ रेवति गरि ओं पाकाशरेवति एहि प्रों धिमवश्वारिणि एहि श्री कम भर्जिनि असुरक्षयकरि भाकाशगामिनि पाम बन्ध बन्ध । अग्रेन कट२ समय तिष्ठ श्री मनसं प्रवेशय त्रों एव मुख- म्बन्ध चक्षुर्वन्ध हस्तपादौ च बन्ध दुष्टग्रहान् सर्वान् बन्ध भी दिशा बन्ध विदिशा बन्ध अधस्ताइन्ध नौ सर्व बन्ध | भसना पानीयेन वा मुक्तिकया सर्वपैया सर्वामावेशय भो पातय गो चामुगडे किलि किलि में विच्चे हुं फट् स्वाहा । पदमामा जयायेयं सर्वकर्मप्रसाधिका ॥१॥ सर्वदा होमजण्याये :पालाधेश्च रणे नयः । अष्टाविंशभुजा ध्येया असिखेटकवरकरी(३) ॥ २ ॥ पदादण्ड युती) चान्यो शरसापधरी परी। 1 सितमस्तकराविनि ०। ९ गदामभक्तो रमिला। परिषदका निक।