पृष्ठम्:अग्निपुराणम्.pdf/८८

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[१३५ अध्यायः । युद्धजयाणवीयसनामजयविद्याकथनं। ७८, महाप्रेतसमारूठे महाविमानसमाकुले कासरावि महागणपरि- हसे महामुखे बहुभुजे घण्टाउमा किङ्किणीअट्टाहासे किति किलि ओं हं फट दंष्ट्राघोरान्धकारिणि मादशब्दबहुले गजचर्म- प्रावृतशरीरे मांसदिगधे लेलिहानोग्रजिडे महाराक्षसि रौन- दंष्ट्राकराले भीमाटाहासे स्मरहियत्प्रभे चल चल नौ चको- रनेत्र चिलि चिलि श्री ललजि ओं भी कुटोमुखि हुवार भयवासनिकपास मालावेष्टितजटामुकुट शशाधारिणि पहाट- हासे किलि किलि बों गदंष्ट्रावोराधकारिणि सर्वविघ्नविमा- शिनि इदं कर्म साधय त्रों शोघ्र कुरु२ ओ फट प्रो अर्शन शमय प्रवेशय श्री रङ्ग रङ्ग कम्पयर प्रचालय बधिर मौसमद्यप्रिये इनर प्रो कुटर छिन्द प्रों मारय श्री अनुक्रमय प्रो बजगरीरम्पातय(१) ओं के लोक्यगतन्दष्टमदुष्ट वा ठहोत- भग्रहोस वा प्रावणय प्रों नृत्य प्रो वन्द कोटराचि केशि उलकवदने करक्रिया भी करङ्गमालाधारिणि दह प्रों पचर मृत घों मगहलमध्ये प्रवेशय प्रों कि विलम्बसि महासत्येन विष्णुसत्येन रुद्रसत्ये न ऋषिमन्येन पावेगय ओ किनि किलि खिलि खिलि विलि विलि ग विकतरूपधारिणि कृष्णभज- प्रवेष्टितशरीरे मर्ष ग्रहावनि प्रलम्बोष्ठिनि भूभङ्गलग्ननासिके विकटमुखि कपिलजटे प्राधि भ(२) ओ ज्वालामुखि(१) ..-... ---------..-. .... .---- - - शरीर पाननि..। हरीर चालयेनिया, म..। १ कपिसाटापारिमित ३ सजनाशामुकिमि