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काल-क्रिया-पाद

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आर्यभटीय
संभवत: ५९९ ई. पू. (599 BC) में रचित
आर्य ३.१क/ वर्षम् द्वादश-मासास् त्रिंशत्-दिवसस् भवेत् सस् मासस् तु/

आर्य३.१ग/ षष्टिस् नाड्यस् दिवसस् षष्टिस् च विनाडिका नाडी//

आर्य३.२क/ गुरु-अक्षराणि षष्टिस् विनाडिका आर्क्षी षट् एव वा प्राणास्/

आर्य३.२ग/ एवम् काल-विभागस् क्षेत्र-विभागस् तथा भ-गणात्//

आर्य३.३क/ भ-गणास् द्वयोस् द्वयोस् ये विशेष-शेषास् युगे द्वि-योगास् ते/

आर्य३.३ग/ रवि-शशि-नक्षत्र-गणास् सम्मिश्रास् च व्यतीपातास्//

आर्य३.४क/ स्व-उच्च-भ-गणास् स्व-भ-गणैस् विशेषितास् स्व-उच्च-नीच-परिवर्तास्/

आर्य३.४ग/ गुरु-भ-गणास् राशि-गुणास् अश्वयुज-आद्यास् गुरोर् अब्दास्//

आर्य३.५क/ रवि-भ-गणास् रवि-अब्दास् रवि-शशि-योगास् भवन्ति शशि-मासास्/

आर्य३.५ग/ रवि-भू-योगास् दिवसास् भ-आवर्तास् च अपि नाक्षत्रास्//

आर्य३.६क/ अधिमासकास् युगे ते रवि-मासेभ्यस् अधिकास् तु ये चान्द्रास्/

आर्य३.६ग/ शशि-दिवसास् विज्ञेयास् भू-दिवस-ऊनास् तिथि-प्रलयास्// आर्य३.७क/ रवि-वर्षम् मानुष्यम् तत् अपि त्रिंशत्-गुणम् भवति पित्र्यम्/

आर्य३.७ग/ पित्र्यम् द्वादश-गुणितम् दिव्यम् वर्षम् विनिर्दिष्टम्//

आर्य३.८क/ दिव्यम् वर्ष-सहस्रम् ग्रह-सामान्यम् युगम् द्वि-५षट्क-गुणम्/

आर्य३.८ग/ अष्ट-उत्तरम् सहस्रम् ब्राह्मस् दिवसस् ग्रह-युगानाम्//

आर्य३.९क/ उत्सर्पिणी युग-अर्धम् पश्चात् अपसर्पिणी युग-अर्धम् च/

आर्य३.९ग/ मध्ये युगस्य सुषमा आदौ अन्ते दुष्षमा इन्दु-उच्चात्//

आर्य३.१०क/ षष्टि-अब्दानाम् षष्टिस् यदा व्यतीतास् त्रयस् च युग-पादास्/

आर्य३.१०ग/ त्रि-अधिका विंशतिस् अब्दास् तदा इह मम जन्मनस् अतीतास्//

आर्य३.११क/ युग-वर्ष-मास-दिवसास् समम् प्रवृत्तास् तु चैत्र-शुक्ल-आदेस्/

आर्य३.११ग/ कालस् अयम् अनादि-अन्तस् ग्रह-भैस् नुमीयते क्षेत्रे//

आर्य३.१२क/ षष्ट्या सूर्य-अब्दानाम् प्रपूरयन्ति ग्रहास् भ-परिणाहम्/

आर्य३.१२ग/ दिव्येन नभस्-परिधिम् समम् भ्रमन्तस् स्व-कक्ष्यासु//

आर्य३.१३क/ मण्डलम् अल्पम् अधस्तात् कालेन अल्पेन पूरयति चन्द्रस्/

आर्य३.१३ग/ उपरिष्टात् सर्वेषाम् महत् च महता शनैश्चारी//

आर्य३.१४क/ अल्पे हि मण्डले अल्पा महति महान्तस् च राशयस् ज्ञेयास्/

आर्य३.१४ग/ अंशास् कलास् तथा एवम् विभाग-तुल्यास् स्व-कक्ष्यासु//

आर्य३.१५क/ भानाम् अधस् शनैश्चर-सुरगुरु-भौम-अर्क-शुक्र-बुध-चन्द्रास्/

आर्य३.१५ग/ एषाम् अधस् च भूमिस् मेधी-भूता ख-मध्य-स्था//

आर्य३.१६क/ सप्त एते होरा-ईशास् शनैश्चर-आद्यास् यथा-क्रमम् शीघ्रास्/

आर्य३.१६ग/ शीघ्र-क्रमात् चतुर्थास् भवन्ति सूर्य-उदयात् दिनपास्//

आर्य३.१७क/ कक्ष्या-प्रतिमण्डल-गास् भ्रमन्ति सर्वे ग्रहास् स्व-चारेण/

आर्य३.१७ग/ मन्द-उच्चात् अनुलोमम् प्रतिलोमम् च एव शीघ्र-उच्चात्//

आर्य३.१८क/ कक्ष्या-मण्डल-तुल्यम् स्वम् स्वम् प्रतिमण्डलम् भवति एषाम्/

आर्य३.१८ग/ प्रतिमण्डलस्य मध्यम् घन-भू-मध्यात् अतिक्रान्तम्//

आर्य३.१९क/ प्रतिमण्डल-भू-विवरम् व्यास-अर्धम् स्व-उच्च-नीच-वृत्तस्य/

आर्य३.१९ग/ वृत्त-परिधौ ग्रहास् ते मध्यम-चारात् भ्रमन्ति एवम्//

आर्य३.२०क/ यस् शीघ्र-गतिस् स्व-उच्चात् प्रतिलोम-गतिस् स्व-वृत्त-कक्ष्यायाम्/

आर्य३.२०ग/ अनुलोम-गतिस् वृत्ते मन्द-गतिस् यस् ग्रहस् भवति//

आर्य३.२१क/ अनुलोम-गानि मन्दात् शीघ्रात् प्रतिलोम-गानि वृत्तानि/

आर्य३.२१ग/ कक्ष्या-मण्डल-लग्न-स्व-वृत्त-मध्ये ग्रहस् मध्यस्//

आर्य३.२२क/ क्षय-धन-धन-क्षयास् स्युर् मन्द-उच्चात् व्यत्ययेन शीघ्र-उच्चात्/

आर्य३.२२ग/ शनि-गुरु-कुजेषु मन्दात् अर्धम् ऋणम् धनम् भवति पूर्वे//

आर्य३.२३क/ मन्द-उच्चात् शीघ्र-उच्चात् अर्धम् ऋणम् धनम् ग्रहेषु मन्देषु/

आर्य३.२३ग/ मन्द-उच्चात् स्फुट-मध्यास् शीघ्र-उच्चात् च स्फुटास् ज्ञेयास्//

आर्य३.२४क/ शीघ्र-उच्चात् अर्ध-ऊनम् कर्तव्यम् ऋणम् धनम् स्व-मन्द-उच्चे/

आर्य३.२४ग/ स्फुट-मध्यौ तु भृगु-बुधौ सिद्धात् मन्दात् स्फुटौ भवतस्//

आर्य३.२५क/ भू-तारा-ग्रह-विवरम् व्यास-अर्ध-हृतस् स्व-कर्ण-संवर्गस्/

आर्य३.२५ग/ कक्ष्यायाम् ग्रह-वेगस् यस् भवति सस् मन्द-नीच-उच्चे//

संबंधित कड़ियाँ

[सम्पाद्यताम्]
  1. सिद्धान्त शिरोमणि (Wikipedia)
  2. सिद्धान्त शिरोमणि
    1. लीलावती
    2. बीजगणित
    3. गणिताध्याय
    4. गोलाध्याय
  3. आर्यभटीय
    1. दश-गीतिका-पाद
    2. गणित-पाद
    3. काल-क्रिया-पाद
    4. गोल-पाद
  4. सूर्यसिद्धान्त

बाहरी कड़ियाँ

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