१५४ ] स्वाराज्य सिद्धि
स्फुटवचनश्तेः स्वानुभूत्या च सिद्धम् ॥२६॥
अत्यन्त सूक्ष्म होने से वह ब्रह्म सत्य है, जैसे प्राकाशा
मिथ्या नलित्व का आधार होने से सत्य है तैसे मिथ्या
रूप जगत नांलता का वह श्राधार हान्नं स सत्य हैं ।
व्यावृत्ति रहित और निवृत्तिक है, श्राधेय नहीं है, सब
पदार्थो का परम द्रष्टा है और सब बाध का अवधि है ।
निःसंगता का सत्य से विरोध नहीं है। इसलिये सर्व गत
होने से ब्रह्म नित्य है, सब कालादि का आत्मा है । साक्षी
होने से उससे अन्य द्रष्टा का निषेध है तथा ऐसे अन्य
सैकड़ों स्पष्ट श्रुति वचन हैं और अनुभव से भी सिद्ध है १६
(तस्य सत्यत्वं सिद्धम्) उस ब्रह्म की सत्यरूपता इन हेतुओं
से सिद्ध है। वे हेतु ये हैं—(सौक्ष्म्यात्) वह सूक्ष्म है इसलिये
भाव यह है कि जैसे कारण रूपता की विश्रांति सत् रूप ब्रह्म
में ही है तैसे ही सूक्ष्म भाव की विश्रांति भी सत् रूप ब्रह्म में
ही है; क्योंकि शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध वाली वस्तु स्थूल
कही जाती है और वह उत्पत्ति वाली भी अवश्य ही होती है,
अतएव अनेित्य होती है। ब्रह्म को वेद् में शब्द, स्पर्श, रूप,
रस, गंध से रहित लिखा है अत: वह सूक्ष्म है तथा अनादि है
और अनादि होने से ही नित्य है । (नभसः नीलिमा आधार
भावात् इव) जैसे प्राकाश मिथ्यारूप नीलत्व का आधार होने
से सत्य है तैसे ही ब्रह्म भी मिथ्या जगत् का अधिष्टान होने से