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प्रसिद्ध अर्थ को नहीं प्राप्त होगा अर्थात् तुम्हारें मत में ‘बहिर’
इस पद को निरालम्बता ही प्राप्त होगी । दूसरे तुम्हारे मत में
(विज्ञान भेदाः) ज्ञानों के भेद और ज्ञानों की विलक्षणता
आदिक (कथं वेद्या:) कैसे जाने जायेंगे '? क्योंकि ज्ञान तुम्हारे
मत में क्षणिक है औरस्थायि ज्ञानान्तर कातुम्हारे मत में अभाव
है। (अथ) ज्ञान रूप ही अखिल पदार्थ हैं इसके अंगीकार के
ऋअनन्तर भी (विविधा वासना वा कुत: ) नाना प्रकार की वास
नायें भी किस कारण से ( स्युः) होंगी ? यहां ज्ञानों को हेतु
मांनोगे तो अन्योऽन्याश्रय आदि दोष प्राप्त होंगे और बाह्य
पदार्थ कोई तुम्हारे मत में हैं ही नहीं, जिसको तुम उक्त दोष की
निवृत्ति के अर्थ वहां कारण रूप मान लोगे । (क्षणिक चिति )
चक्षणिक विज्ञान में (प्रागुक्त दोषाः) पूर्व श्लोक में कहे हुए. दोष
अर्थात् क्षणिक पदाथा का कारणत्व आदि नहीं बन सकता
इत्यादिक दोप (स्युः) होंगे । (तेन ) इसलिये क्षणिक, विज्ञान
वाद् (हतः) विनष्ट हुआ ॥२५॥
अब प्रभाव से वा शून्य से ही जगत् उत्पन्न होता है, इस
मत का रखडन करते हैं।
नाभावाद्भाव जन्म क्वचिदपि कलितं निर्वि
शेषाद्विचित्रं न स्यात् तेनानुविद्धे ह्यसदस
दिति च प्रत्ययः स्यादशेषे । केनाभाव प्रथा
ते. किमिति न सकलं सर्वतः स्यादभीष्टं सर्वेषां
स्यादयत्नं किमिति जड भवानात्मघाते प्रवृत्त:२६
४ स्वा. सि.