५० ] स्वाराज्य सिद्धि अभाव से भाव की उत्पत्ति जानने में नहीं श्राई, एक ही प्रकार के शून्य स्वरूप अभाव सें विचित्र जगत् नहीं होगा, और इस अभाव से सब जगत् में असत् असत् ही होगा । व अभाव को किस प्रमाण से कहता है, श्रभाव सर्वत्र है फिर सब ही कार्य सर्वत्र क्यों नहीं होगा ? जिससे सब लोगों को अप्रयत्न ही अपने इष्ट की प्राप्ति होगी। इसलिये, हे जड़ आत्मघात करने वाले असत् उपदेश में द क्याँ प्रवृत्त होता है ? ॥२६॥ ( क्वचिदपि ) कहीं भी (अभावात् भाव जन्म) अभावसे वा शून्य से भाव पदार्थ की उत्पत्ति (न कूलितम्) जानने में नहीं श्राई । यदि अभाव से ही भाव पदार्थ उत्पन्न होता है तो सर्व वस्तुओं का सर्व वस्तुओं में अभाव है इसलिये सर्व वस्तुश्रों की सर्व ही वस्तुओं से उत्पत्ति होनी चाहिये और ऐसा होने पर तत् तत् कारण का तत् तत् कार्य की उत्पत्ति के लिये कथन और प्रहण निष्फल है। फिर प्राकाश पुष्प आदिकों से खेती श्रादिक कार्य भी होजाना चाहिये, जिससे कृषिवल यानी किसान भी कृत-कार्य होंगे ! (निर्विशेषात्) एक ही प्रकार के शून्य रूप श्रभाव से (विचित्रम्) नाना प्रकार का चित्र विचित्र जगत् रूप कार्य (न स्यात्) नहीं होवेगा । अब कार्य कारणान्वित ही होता है इसलिये (तेन) उस अभाव. से (अनुविद्धे ) श्रन्वितः (अशेपे हि ) सब ही जगत् में प्रसिद्ध ( श्रसत् असत् इति प्रत्ययः स्यात्) असत् असत् इस प्रकार अभाव का ही प्रत्यय होना चाहिये। क्योंकि जो कार्य जिस कारण से अन्वित होता है वह कार्य उस कारण के प्रत्यय से
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