=भशे पक्षौ (कल्पभ) भक्तौ तदा य= ककु x गभगण +भशे ककुxगभगण-+- अत्र ककु, कल्पभ भाज्यहाराभ्यां यौ राशी तत्राधरः कल्पभभक्तः शेषं गतभगण मानम् । परन्तु यद्यधिक् शे=भशे, तद्धरः=ककु, अल्पशेषं = ०, तद्धरः=कभगण तदा कुट्टकविधिना छेदवध (हरघात) समे हरे शेष मानम्=गतभगण. ककु+-भशे अत इदं शेषमानं कल्पभगणभक्त लब्ध य मानं भवेद्राश्यादिशेषेऽपि तत्तच्छेदाभ्यां छेदघातसमे छेदेऽग्र (शेष) मानीय तत्कल्पभगणभक्तमहर्गणो भवतीति । सिद्धान्त शेखरे “चक्रक्षभागकलिका विकलादिशेषमग्र ' स्वहारविहृतं भगणादि भक्तम् । न्यूनाग्रमत्र हि फलं भगणादिनाप्तं लब्धं भवेद्दिनगणस्त्वपवर्त्तिते स्यात् ।” श्रीपत्युक्तोऽयं प्रकार प्राचार्योक्तिप्रकार सम एवेति ॥७॥। अत्र कोलजू कानुवादानुसारेण प्रश्नरूपार्यायास्त्रुटिर्वतते सा च ‘इष्ट भगणशेषाद्वा राश्यंश कलाविलिप्तिकाशेषात् । आनयति द्युगणं यः कुट्टाकारं स जानाति एवं भवि तुमर्हतीति ॥९॥ अब भगणादि शेष से अहर्गणानयन कहते हैं । हेि. भा.-भगणादि शेष (भगण शेष,राशिशेष, कलाशेष, विकलाशेष, उसके षष्टय' (६०) शादि शेष) को छेद (दृढ़कुदिन) से भाग देने से अग्र (शेष) होता है। एक दिन सम्बन्धी भगणादिशेष (दिनज शेष) से शून्य को भाग देने से द्वितीयशेष होता है। अर्थात् भगणादि शेष एक अग्र (शेष) उसका छेद (हर) दृढ़ कुदिन । और शून्य द्वितीय अग्र उसका छेद दिनज शेष कल्पना कर दोनों छेदों के घात तुल्य छेद में कुट्टक रीति से अग्र(शेष)साधन करना उसको भगणशेष से भाग देने से लब्ध अहर्गण होता है। यहां कोलब्रक साहब के अनुवादानुसार प्रश्नरूप प्रार्था की त्रुटि है वह संस्कृतोपपत्ति में लिखित श्लोक के सदृश होना चाहिये ॥९॥ उपपत्ति । कल्पना करते हैं अहर्गण प्रमाण=य तब अनुपात करते हैं यदि कल्प कुदिन में कल्प भगण पाते हैं तो अहर्गण में क्या इस अनुपात से आते हैं गतभगण और भगणशेष ! तब = गतभ-+ ':' , छेदगम से कल्पभ. य=ककु. गतभ-- भशे, दोनों पक्षों को कल्पभ भाग देने से य = ककु. गतभ +-भशे कम और हार से जो दो राशिप्रमाण होता है उसमें अघर (नीचे की) राशि को ‘कल्पभ' से भाग देन से शेष गतभगण का मान होता है। परन्तु यदि अधिकाग्र =भशे, उसकी हर=ककु, अल्पाग्र=०, उसका हर= कभगण । तब कुट्टक विधि से छेदवध तुल्य छेद में शेषमान=गत
पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/६७
दिखावट