पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/२५

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( १६ ) है। गणित क्रिया एक ही हैं। श्रीपति ने भावना का स्वरूप नहीं कहा है। वर्गात्मक प्रकृनि में कनिष्ट और ज्येष्ठ के आनयन को ब्रह्मगुप्त ही से लेकर भास्कराचार्य ने अपने बीज गणित में ‘इष्टभक्तो द्विधाक्षेप इष्टोनाढयो दलीकृत:’ आदि श्लोकों द्वारा कहा है । परन्तु श्रीपति ने इसके विषय में कुछ भी नहीं लिखा है । ब्रह्मगुप्तोक्त ‘शङ्कुच्छायादि ज्ञानाध्याय अपूर्व है। इस अध्याय में जो विषय प्रतिपादित है वह सिद्धान्त शेखर और भास्करीय सिद्धान्तशिरोमणि में नहीं है। वस्तुतः यह अध्याय दर्शनीय और पठनीय है । छन्दश्चिन्यु त्तराध्याय ऐसा विचित्र है; कि इसमें लिखित श्लोकों की उपपत्ति की बात तो अलग रही उनकी तो साधारण व्याख्या भी अभी तक किसी ने नहीं की। गोलाध्याय में भूगोन्न संस्थान, देवासुरसंथान, चक्रभ्रमणव्यवस्था देवादिकों की रविभ्रमण स्थिति, देों और दैत्यों का राशि संस्थान, देवादिकों का रवि दर्शन काल, भूगोल में लङ्का और अवन्ती का स्थान, आदि आदि विषय वणित हैं । भूपरिधि तुर्यभागे लङ्का भूमस्तकात् क्षितितलाच्च । लङ्कोत्तरतोऽवन्ती भूपरिधेः पञ्चदश भागे ।। . के द्वारा लङ्का से भूपरिधि के पञ्चदशांश पर अवन्ती की स्थिति को आचार्य ने बतलाया हैं । परन्तु आचार्य के अनुयायी भास्कराचार्य ने सिद्धान्त शिरोमणि के गोलाध्याय में ‘निरक्षदेशात् क्षितिषोडशांशे भवेदवंतीं गणितेन यस्मात्' कहा है । चतुर्वेदाचार्य सम्मन पाठ ‘पञ्चदशभागे' ही है । सिद्धान्त शेखर में ‘सत्र्यंशरामाग्निगुणैरवन्त्याः स्याद्योजनैर्द क्षिणतो हि लङ्का' कहा गया है । श्रीपति के मत से उज्जयिनी (अवन्ती) का अक्षांश= २४° तथा भूपरिधिमान = ५००० है, अत: ३३३ एतत्तुल्य लङ्का और १५ अवन्ती के मध्य में योजनात्मक दूरी हुई । यहां भूपरिधेरष्टयशेऽवन्ती स्यात् सौम्यदिग्भागे' लल्ल की इस उक्ति से तथा भास्कर की पूर्वोक्ति से उज्जयिनी का अक्षांश =२२।३०' है, वराहमिहिराचार्य के मत से अक्षांश परमक्रान्त्यंश के बराबर = २४ है । पञ्च सिद्धान्तिका में प्रोद्यद्रविरमराणां भ्रमत्यजादौ कुवृत्तगः सव्यम् । उपरिष्टाल्लङ्कायां प्रतिलोमश्चामरारीणाम् ।। मिथुनान्ते च कुवृत्तादंश चतुर्विशतिं विहायोच्चैः । भ्रमति हि रविरमराणां समोपरिष्टात्तदाऽवन्त्याम् ।। श्रीपति के मत से अवन्ती का अक्षांश =२४, इसके आधार पर योजमान = ३३३३ योजना होता है। आचार्योक्त के अनुसार ही श्रीपति के मत से भी लङ्का, उज्जयिनी के दक्षिण में परिधि के पञ्चदशांश पर स्थित है । लल्लाचार्य और भास्कराचाय के मत से लङ्का, अवन्ती के दक्षिण में भूपरिधि के षोडशांश पर स्थित सिद्ध होती है। इस