व्याख्यामेंउदयनाचार्यऔरश्रीधराचार्यदोनोंने बुद्धि ही'अस्मद् भ्योलिङ्गभूपेः' इस को खत्रत्वेन उद्धत किया हैं । शंकरामश्र का इस का पता ही नहीं। और पं० विन्ध्येश्वरी प्रसाद शम्मी को जो एक बहुत पुराना (उनके अनुमानासार ४०० वर्ष से पहले का) लिखा हुआ सूत्रपाठ मिला है, उसमें यह सूत्र है। और उक्त शर्मा जी के अनुसार ' चत्रमाशावलम्वेन निरालम्वेपि गच्छतः ’ सूत्र मात्र का सहारा पकड़ कर विना सहारे चलन लगा हूँ, कहने वाले शंकरमिश्र ने सूत्र छोड़े भी हैं, कहीं एक ही सूत्र के दो सूत्र भी वना डाले हैं, कहीं दो को एक किया है, कही पाठ की कल्पना भी की है । यह सत्य है, कि सर्वथा शंकरमिश्र विरचित उपस्कार सूत्रनिर्णय में प्रमाण नहीं हो सकता ।
पं० विन्ध्येश्वरी प्रसाद को जो पुराना लिखा हुआ सूत्रपाठ मिला है, उस के अनुसार दस अध्यायों मे मृत्र संख्या क्रमशः =३५९ और उपस्कार के अनुसार ४८--६८-४०-२४--४४ +-३२-५-५३-५-१७--३८-१६=३७० इस प्रकार अध्याय २ मे भेद है । तो क्या फिर अव सूत्रो को अपने मूलरूप में लाना अस म्भव तो नहीं होगया नहीं,तथापिइस के लिएपयत्रसविशपेहाना चाहिये । एक तो प्राचीन हस्तलिखित सूत्रपाठों का संग्रह करना चाहिये, दूसरा भारद्वाज वृत्ति और रावण भाष्य को उप लब्ध करना चाहियें, तीसरा किरणावली आाद प्राचीन व्या ख्याओं में उदृत सूत्रों का संग्रह करना चाहिये, तथा शङ्करा