पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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॥ मालविकाग्निमित्रम् ॥
- राजा | पश्य सखे ते सख्या मुखम् |
- भ्रूभङ्गभिन्नतिलकं स्फुरिताधरोष्ठं
- सासूयमाननमितः परिवर्तयन्त्या |
- कान्तापराधकुपितेष्वनया विनेतुः
- संदर्शितेव ललिताभिनयस्य शिक्षा || १ ||
- विदूषकः | १अणुणअसज्जो दाणिं होहि |
- मालविका | २अज्जगोदमोवि एथ्थ एव्व सेवेदि णं | पुनः स्थानान्तराभिमुखी भवितुमिच्छति |
- बकुलावलिका | मालविकां रुद्ध्वा | ३ण हु कुविदा दाणिं तुमं |
- मालविका | ४जइ चिरं कुविदं मण्णेसि एसो पच्चाणीअदि
- कोवो |
- राजा | उपेत्य |
- कुप्यसि कुवलयनयने चित्रार्पितचेष्टया किमेवमयि |
- ननु तव साक्षादयमहमनन्यसाधारणो दासः ||१० ||
- बकुलावलिका | ५जेदु भट्टा |
- मालविका | आत्मगतम् | ६कहं चित्तगदो भट्टा मए असूइदो |
- सव्रीडवदनाञ्जलिं करेति |
- १. अनुनयसज्ज इदानीं भव |
- २. आर्यगौतमोप्यत्रैव सेवत एनम् |
- ३. न खलु कुपितेदानीं त्वम् |
- ४. यदि चिरं कुपितां मन्यसे एष प्रत्यानीयते कोपः |
- ५. जयतु भर्ता |
- ६. कथं चित्रगतो भर्ता मयासूयितः |
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