खेला खेला (स्त्री०) क्रीड़ा | खेल | खेलिः (सी० ) १ मोड़ा | खेल | २ तीर । खोटि: (सी० ) चालाक या नटखट स्त्री। खोड (वि०) लंगदा । लुला । खोर ) ( वि० ) लंगड़ा लूला। खोल खालकः (पु०) १ पुरवा गाँव । २ बॉबी | ३ सुपाड़ी ख्यातिः ( जी० ) १ प्रसिद्धि ४ गधी विशेष | का छिलका खोलिः (पु० ) तरकस ख्या ( चा० परस्मै० ) [ ख्याति, ख्यात ] कहना। यतलाना। बखान करना। [ख्यायते] प्रसिद्ध होना [( निजन्त ) ख्यापयति ख्यापयते ] १ प्रसिद्ध ( २७४ ) ग संस्कृत या नागरी वर्णमाला का तीसरा व्यञ्जन । कवर्ग का तीसरा वर्ण। इसका उच्चारणस्थान कमव्य है। इसको स्पर्शच कहते हैं। ग (वि०) केवल समास में पीछे आता है और वहाँ इसका अर्थ होता है कौन कौन जाता है, हिलने वाला। जाने वाला होने वाला ठहरने वाला रहने वाला। मैथुन करने वाला। गं (न०) गीत | भजन । गः ( पु० ) 3 गन्धर्व गणेश जी चुन्दः शास्त्र में गुरु अक्षर के लिये चिन्ह गङ्गा करना | ३ उद्घोषित करना २ कहना करना। तारीफ करना। प्रशंसा करना | फाल्गुने गगने फेमे सत्यनिष्द्धन्ति पर्वराः । अर्थात् फाल्गुन, गगन और फेन शब्दों में जङ्गली लोग न की जगह ण लगाते हैं ] आकाश अन्तरि २ शून्य सिफर | ३ स्वर्ग | --अ, (न०) सब से ऊँचे ऊर्ध्वंलोक। अंगना, ( स्त्री० ) अप्सरा परी। किचरी - श्रध्वगः, ( पु० ) १ सूर्य । २ ग्रह इस्वर्गीय जीव- अम्बु, ( न०) वृष्टिजल /-उल्मुकः, (पु० ) मङ्गलमह ।– कुसुमं, पुष्पं, (न०) आकाश का वर्णन ख्यात ( व० कृ० ) १ जाना हुआ। २ उक्त कहा हुआ। ३ प्रसिद्ध । मशहूर बदनाम गईण, (वि०) बदनाम | शोहरत | गौरव | कीर्ति । २ संज्ञा | पदवी । उपाधि । ३ वर्णन | ४ प्रशंसा । ५ ( दर्शन में ) ज्ञान | ख्यापनम् (न०) १ वर्णन प्रकाशन | व्यक्तकरण प्रकट करना । २ प्रसिद्ध करना | कीर्ति फैलाना | www फूल (असम्भान्य वस्तु ) | ~~-गतिः, (पु०) १ देवता । २ स्वर्गीय जीव । ३ ग्रह चर, (गगनेचर भी) ( वि० ) आकाश में चलने वाला। -चरः, (पु०) १ पक्षी २ ग्रह । ३ स्वर्गीय चात्मा - ध्वजः, ( पु० ) १ सूर्य । २ बादल । - सद्, ( पु० ) आकाशवासी या अन्तरिक्ष में बसने वाला (पु०) स्वर्गीय जीव । - सिन्धु, (स्त्री० ) गङ्गाजी की उपाधि । -स्थ स्थित, (वि० ) धाकाश में टिका हुआ ।-स्पर्शनः, (पु०) १ पवन । हवा । २ अष्ट मास्तों में से एक का नाम । गंगा ) ( स्त्री० ) भारतवर्ष की पुण्यतोया प्रसिद्ध नदी म्यु, अम्भस्, (न०) गङ्गाजल। २ आश्विन मास की दृष्टि का निर्मल जल । ध्यवताः, ( पु० ) १ गङ्गाजी का भूलोक में आगमन | २ तीर्थस्थलविशेष | - उद्भेदः, (१०) गङ्गाजी के निकलने का स्थान। गङ्गोत्री/क्षेत्रं, ( न० ) गङ्गाजी और उसके दोनों रूटों से दो दो कोस का स्थान -जः (पु०) २ कार्तिकेय /- दत्तः, ( पु० ) भीष्मपितामह । - द्वारं, (न० ) वह स्थान जहाँ गङ्गाजी पहाड़ छोड़ मैदान में आती है। हरिद्वार धरा, (पु०) १ शिवजी । २ समुद्र । -पुत्रः, (पु०) १ भीष्म । २ कार्तिकेय । 1- गगनम् } ( न० ) [ किसी किसी के मतानुसार | गङ्गा गगणम् 3, गगणम् रूप अशुद्ध है।
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