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पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/२३९

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3 काष्टकम् ( किणी किणी किकिणिका ( पु० ) लकदी में रहने वाला एक छोटा कीड़ा -वाद, (पु०) - वाटं, (न०) लकड़ी की दीवाल। काष्टकम् ( न० ) ऊद | अगर काष्ठा (स्त्री०) ३ दिशा । २ सीमा | ३ चरम सीमा । ४ दौर का मैदान | ५ चिन्ह । घुड़दौड़ का | किङ्किः | पाला । ६ आकाशस्थित पवन या वायु का मार्ग || किंकरा | किंकरः | फिडिशिका समय का परिमाण । कला का तीसवाँ भाग काकः ( पु० ) की ढोने वाला। काठिका ( स्त्री० ) लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा । काष्टीला (स्त्री० ) कदली वृक्ष । केले का पेड़ । कासू (घा० आत्म० ) [ चासते० फासित ] 1 चम कला २ खखारना | खाँसना कहरना। कासः ) 3 खाँसी क्रम २ छींक / कुठे, कासा ) (वि० ) खौंसी से पीड़ित ।-घ्न, हृत, (दि०) खौंसी दूर करने वाला। कफ निकालने वाला । - 1 कासरः ( पु० ) भैसा | [ स्त्री० - कासरी] भैंस | कासारा (५०)} तालाब । पुष्करिणी । कासारम् (न० ) तलैया। झील | सरोवर । कालु । ( स्त्री०) १ एक प्रकार का भाला २ अस्पष्ट काशु } भाषण । ३ दीसि दमक । आव ४ रोग | ५ भक्ति | कासुति (स्त्री० ) पगडंडी | गुलमार्ग | काहल (वि०) : सूखा | मुर्भाया हुआ । २ उत्पाती। ३ अत्यधिक प्रशस बढ़ा। काहलः ( पु० ) १ बिल्ली १२ मुर्गा ३ काक ४ रव | आवाज़ | २३२ ) फाइलम् (न० ) अस्पष्ट भाषण | काहला ( श्री०) बढ़ा ढोल काहली (स्त्री० ) युवती स्त्री । किंवत् (चि० ) ग़रीय | तुन्छ । बापुरा । किंशुकं ( पु० ) पलाश बृढ ढाक का पेड़ | किंशुक: ( न० ) पलाश पुष्प | किंशुलकः ( पु० ) पलाश गुरु किकि: ( पु० ) १ नारियल का पेड़ | २ नीलकण्ठ पक्षी ३ चातक पक्षी | किम् ( स्त्री० ) घुंघरू । रोना छोटी छोटी घंटियाँ | ( ० ) घोड़ा | २ केकिल्ल । ३ भौरा । ४ कामदेव । ५ लाल रंग । ( स्त्री० ) खून | रक्त | लोहू हिंडित, किकरातः ( पु० ) १ तोता | २ कोकिन । ३ किङ्किरातः ) कामदेव । ४ अशोक वृक्ष। किंजलः किजलः किंजल्क (पु० ) कमल पुष्प का रेशा या कमल को फूल | किसी फ का फूल या उसका किअल्कः रेशा | किटि: (पु० ) शूकर सुअर किटिभः (पु० ) खटमल | जुआँ | चील्हर के 1 किट्ट ) ( म० ) कीट कॉइट मैल तलछट किट्टकं छानन | किट्टालः (पु०) १ ताँबे का पाय २ लोहे का मोर्चा | किण: ( पु० ) १ ठेठे | धट्टा | चट्टा गूत | फोड़े या घाव का निशान | २ तिल । मस्सा | ३ लकड़ी का शुभ किश्वं ( ० ) पाप किरावं (g०)) मदिरा का खनीर उठाने या उसमें किरावः (म०) ) उफान खाने वाली द्रव्य विशेष | कित् (धा० परस्मै० ) ( केठि ) १ करना । २ जीवित रहना। ३ इलाज करना। दंगा करना। आराम करना । कितवः (पु० ) [ स्त्री० - कितवी, ]१ बदमाश । गुंडा | लवार | कपटी | २ धतूरे का पौधा । ३ सुगन्ध द्रव्य विशेष | किंबिना } ( पु०) घोड़ा । श्रश्य । किशाद: ( पु० ) धान की बाल २ बगुला । किशरः ( पु० ) देवताओं के गायक । इनका मुख कङ्कपची ३ तीर । घोड़े जैसा और शरीर मनुष्य जैसा होता है। किनरेश ( पु० ) कुबेर | धनाधिप । किम् ( धन्यया० ) समासान्त शब्दों में यह प्रथम कु की जगह प्रयुक्त होता है और इसके अर्थ यह होते हैं ख़राबी, हास, रोव, कलह या विकार। -~-किसखा, अर्थात् दुष्ट या बुरा मित्र | यथा-- -