( =* ) अरण्य अयि (अध्या० ) ( किसी से प्यार से बोलते समय | सम्बोधन करने का शब्द।) थोह। हो । ए प्रयुक्त (वि० ) १ जो गाड़ी के जुएँ में जुता न हो या जिल पर जीन न कला हो । २ जो मिला न हो । जुड़ा न हो। मिला हुआ । सम्बन्धयुक्त । अयोध्य (वि० ) जो आक्रमण करने योग्य न हो । अप्रतिरोधनीय । धातिप्रथन्न । अयोध्या ( स्त्री० ) सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी जो सरयू के तट पर बसी हुई है। अयोनि (वि० ) अजन्मा । नित्य-ज- अम्मन् (वि० ) जो गर्भ से उत्पन्न न हुआ हो।आ -सम्भवा । ( स्त्री० ) जनकदुहिता सीता । ३ अभक्तिमान् । अधार्मिक | अमनस्क ! असावधान | अयोनिः ( स्त्री० ) गर्भाशय नहीं। अझ की उपाधि | ४ अनन्यस्त | जो किसी काम में न लगा हो । ५ अयोग्य | अनुपयुक्त | अनुचित | ६ झूठा । AM अयोगप ( न० ) समकालीनता का अभाव | यौगिक (वि०) [स्त्री० ययौगिकी ] शब्दसाधन- विधि से जिसकी उत्पत्ति न हो। असर ! श्रयान अयानं ( २० ) न चलना न हिलमा डुलना ठह- रना। गतिरोध | अवस्थिति। 2 अयुग ) ( वि० ) प्रथक इकेला | इकेहरा | अयुगल २ अविभाज्य-अर्चस्, (५०) अग्नि । आग नेशः, -नयनः, ( पु० ) शिवजी का नाम /-शरा ( पु०:) कामदेव का नाम /- सप्तिः (पु०) सात घोड़ों वाला। सूर्य । अयुज् (वि०) अविभाज्य | इषुः, चासः अरजसू ( ( वि० ) धूल से रहित | साफ । अरज अरजस्क २ प्रत्यासति से वर्जित । ( पु० ) कामदेव का नाम । ( कामदेव के पास २ बाद बतलाये जाते हैं ) -नेत्र, लोचन, - अक्ष, -शक्ति शिव जी का नाम । अयुत् (वि० ) जो मिला न हो | असंयुक्त | असंबद्ध ।-अयुतम् ( १० ) दस हज़ार की संख्या --अध्यापकः, (पु०) एक अच्छा शिक्षक -सिद्धिः (स्त्री०) कोई कोई वस्तुएँ या विचार अभिन्न हैं- इस बात को प्रमाणित करने की किया। रजस्का ( स्त्री० ) जिसको मासिक धर्म न हो। अरजाः ( सी० ) रजोधर्म होने के पूर्व की अवस्था की सड़की। " ध्ययुतम् ( स० ) दस हजार की संख्या । विवाद द्योतक अये (अन्य ) देखो “अयि ।" यह क्रोध, आश्चर्य, सम्वोधन याची अन्यम है। अयोग: पु० ) बियोग। अलगाव । अन्तराल अवकाश २ अयोग्यता असंलग्नता ३ अनु- चित मेल | ४ विधुर । रडुचा । १ हथौड़ा | ६ अरुचि । नापसंदगी अयोगवः (पु० ) [ श्री० --प्रयोगवा, प्रयोगवी ] देखो आयोगव सूत्र पिता और वैश्या माता का पुत्र व्ययोग्य (वि० ) १ बेकार। निकम्मा 4 अरः (.go ) पहिये की नाभि और नेमि के बीच की लकड़ी :--अन्तर ( बहु० ) आारों के बीच की खाली जगह घट्टः घट्ट (पु० ) रहट | कुए से पानी निकालने का मंत्र विशेष । २ गहरा कूप । जो योग्य न हो । अनुपयुक्त। अपात्र | प्रज्जु ( वि० ) विना रसियों का । ( न० ) फारा- गृह जेल | अरणः (स्त्री० ० ) अरणी ( श्री. ) यश के लिये भाग इसकी लकड़ियों को रगढ़ कर ही निकाली जाती थी। ( छेकुर की लकड़ी जिसको 5 रगड़ने से अग्नि निकलता है। व्रण (30) सूर्य । २ अग्नि ३ चकमक पत्थर । अररायं ( न० कभी कभी पु० भी ) जंगल | चन । -अध्यक्षः (पु०) वन का निगरांकार बन की देखरेख करने वाला। फारेस्टरेंजर अयनं, - यानं, (न० ) वनगमन । तपस्वी बनना । - प्रोकसू, सद्, (वि० ) वनवास | २ वन- वासी । बागमस्थ या संभ्यासी चन्द्रिका, ( अन्व० ) वन में चोदनी (आलं० ) वृथा का शृङ्गार (नृपतिः, - रांजू, राहू, राज, - - ( पु०) सिंह | चीता। -- परितः (go ) धन का
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