पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/९३

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अरि अरविन्दिनी ( स्त्री० ) : कमल का पौधा | २ कमल पुष्पों का समूह | ३ वह स्थान जहाँ कमलों का बाहुल्य हो । अरण्यकम् ( न० ) वन | जंगल । अरण्यानिः } ( स्वी० ) एक बड़ा लंबा चौड़ा वन । अरस ( वि० ) १ रसहीन नीरस फीका | २ निस्तेज | मंद | ३ निर्बल बलहीन | अगुण- कारी । अरत ( वि० ) सुस्त । काहिल | २ असन्तुष्ट । २ कविता के मर्म को न जानने वाला। विरुद्ध त्रप, (वि० ) जो रमय करने में | अरसिक ( वि० ) १ रूखा । जो रसिक न हो। लजावे नहीं -त्रपः ( पु० ) कुत्ता (जो गली में कुतिया के साथ रमण करने में लज्जित नहीं होता। भरतं ( न० ) अरमणकार्यं । अरति ( वि० ) असन्तुष्ट | २ सुस्त | काहिल । चेष्टाहीन । अरतिः (स्त्री ) १ भोग विलास का अभाव । २ कष्ट | पीड़ा दुःख | दर्द | ३ चिन्ता | शोक | विकलता। घबड़ाहट | ४ असन्तुष्टता | असम्वोष | २ चेष्टाहीनता सुस्ती । काहिली। ६ उदरख्याधि | अरण्यकम् परिडत ( अलं० ) मूर्ख मनुष्य -इवन् ( पु० ) भेड़िया | अरतिः (पु०या० स्त्री० ) १ मुट्ठी सूका घूंसा २ एक हाथ ( का नाम ) । कोहिनी से छगुनियां की नोक तक | अरनिक ( पु० ) कोहनी। हाथ और बाँह के बीच का जोड़ रं ( अन्यया० ) १ तेजी से। समीप | पास | विद्य मान । २ तत्परता से अरमण हे (वि०) १ अप्रसन्नताकारक। प्रतिकूल यरममाण ) नापसंद १२ सतत । अररं ( २० ) ११ कपाट | किवाड़ | २ गिलाफ । अररो (स्त्री०) ) भ्यान । ढक्कन । अररः (पु० ) राँपी ( चमार का एक औज़ार ) । अरे (अव्यया० ) अतिशीघ्रता अथवा घृणा व्यक्षक सम्बोधनवाची अव्यय । ( ६ ) अरविंदः ) ( पु० ) १ सारस १२ तांबा | श्र अरविन्द ) (ध्यरविन्दाक्ष) (वि०) कमलनयन | विष्णु का विशेषण या उपाधि । - दलप्रभम् (न०) तांबा - नाभिः, नामः, ( पु० ) विष्णु का नाम :- (पु०) ब्रह्मा का नाम । 1-सद् अरविंद ) ( न० ) १ कमल । रक्त या नीले कमल अरविन्दम् ) का फूल | धराग (वि० ) १ अनासक्त । उदासीन । अरागिन् । २ स्थिर | पक्षपातशून्य अराजन् ( पु० ) राजा नहीं ।—भोगीन ( वि०) अराजक ( वि० ) राजारहित । जहाँ राजा न हो। राजा के काम लायक नहीं । - स्थापित (वि०) जो राजा द्वारा प्रतिष्ठित न हो; आईन विरुद्ध प्ररातिः ( पु० ) १ शत्रु | वैरी | २ छः की संख्या | अराल (वि०) टेदा मेड़ा मुड़ा हुआ --भङ्गः (पु०) शत्रुओं का नाश ( स्त्री० ) वह स्त्री जिसके घुघुराले बाल हों।-- भरालः (पु० ) १ टेड़ी या झुकी हुई बाँह | २ मद- पदमन् (वि० ) टेड़ी मेदी बक्षियों वाला। माता हाथी । केशी भराला ( स्त्री० ) वेश्या । पुंचली | रंडी | अरिः ( पु० ) १ शत्रु | वैरी | २ मनुष्य जाति के छः शत्रु, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि जो मनुष्य के मन को व्याकुल किया करते हैं। काम क्रोधस्तथा लोभो मदमोदो चमस्मरः । कृतारिषद् वर्ग अपेम-॥ किरातार्जुनीय । ३ छ की संख्या ४ गाड़ी का कोई भाग | २ पहिया -कर्षण, ( वि० ) शत्रुजयी या शत्रु को अपने वश में करने वाला 1-कुलं, (न० ) १ बहुत से शत्रु । शत्रु समुदाय | २ शत्रु । -मः, ( पु. ) शत्रु का नाश करने वाला । -विम्तनं, (न०) चिन्ता (स्त्री० ) वैदेशिक शासन विभाग | शत्रु सम्बन्धी व्यवस्था |-- नन्दन, (वि० ) शत्रु को प्रसन्नता। शत्रु को विजय दिलाने वाला। -भद्रः (पु०) सब से बढ़ा या मुख्य शत्रु |Srkris (सम्भाषणम्)सूदनः, हन्, हिंसक, ( पु० ) शत्रुहन्ता | शत्रु को मारने वाला । -