पृष्ठम्:रामकथामञ्जरी.pdf/१०२

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( मञ्जूषाम् ) सन्दूक को। ( अपावृत्य } खोलकर । ( लीलया) विना. खेद के। (निर्धात-सम-निःस्वनः ) विजली की कड़क के समान शब्द वाला ! ( विगत-साध्वसः) शङ्का ( भय ) रहित। पृष्ठ ११ (क्लान्तवाहनाः) (निरन्तर चलने से ) जिन के घोड़े श्रान्त हो गये थे। (अभ्युपेयिवान् ) पहुँचा । पृष्ठ 12 (मुदान्वितम् ) हर्ष से युक्त । ( समक्षम् ) सामने । (प्रतीच्छ) स्वीकार करो। पृष्ठ 13 (आपृच्छय.) आज्ञा लेकर । (राज-विमर्दनम् ) क्षत्रियों को कुचलने वाले। पृष्ठ 14 (सज्यम् ) ज्या-युक्त । ( उदैक्षत ) देखने लगा। (कृतदाराः ) विवाहित होकर । ( कृतास्त्रा) अस्त्र-विद्या सीख कर । अयोध्याकाण्ड (नित्य शत्रुघ्नः ) नित्य शत्रुयों ( काम क्रोधादि का नाश करने वाला। (सर्व भूतानुकम्पनः) सब जीवों पर दया करने