पृष्ठम्:रामकथामञ्जरी.pdf/१०१

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( उपाघ्राय ) चुम्बन कर । (धन्वी ) अनुष धारण किये : हुए । (अध्यर्ध योजनम् ) डेढ़ योजन पर्यन्त । ( मन्त्र-ग्रामम् ) बला तथा अबला नाम मन्त्रों के समूह को । ( भावितात्मनः) जिसने आत्म-स्वरूप का ध्यान किया हुआ है। (घोर सङ्काशम् ) भयानक दर्शन वाले। पृष्ठ 6 (अविग्रहतम् ) जहाँ पर लोगों का आना जाना न हो। आवार्य ) रोक कर । ( जहि) मारी ! ( चातुर्वर्ण्य-हितार्थम्) चारों वर्णो की भलाई के लिए। { ज्या-घोषम् । चिल्ले शब्द को। पृष्ठ 7 (विन्याध) छेदा । (नियतेन्द्रियः) इन्द्रिय जिसके वश में हो। (भीम-संकाशाः ) भयानक । ( रुधिरौधम् ) रुधिर के प्रवाह को आपतन्तौ) पाते हुए । ( राजीव लोचनः) कमल समान नेत्र वाला। (परम-भास्वरम् ) बड़े चमकीले। पृष्ठ 8 ( सागर संप्लवे ) समुद्र के मध्य में निरीतिकाः) उपद्रव से रहित । ( यज्ञ वाटम्) यज्ञ भूमि को। पृ. 9 ( यज्ञोपसदनम् ) यज्ञशाला को । ( जिज्ञासाम्) जानने की इच्छा को