पृष्ठम्:रामकथामञ्जरी.pdf/१०३

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वाला ( पर्जन्य इव) मेघ के समान । ( उद्धर्षणम् ) प्रसन्न करने वालें । ( पाण्डुरस्य) श्वेत । (आतपत्रस्य ) छत्र की। पृष्ठ 16 (बर्हिण ) मेार । ( नावृताननम् ) जिसके सिर पर छत्र झुल रहा हो। (शचीपतेः इन्द्र के। पृष्ठ17 (विख्यात पौरुषम् ) प्रसिद्ध बल वाले (पुष्ययोगेन) पुष्ट नक्षत्र के साथ चन्द्रमा के योग में । पृष्ठ18 (ज्ञाति दासी) पितृ कुल के साथ सम्बन्ध रखने वाली दासी। (प्रहर्षोत्फुल्ल नयनाम् ) बहुत हर्ष से जिसके नेत्र खिले हुए हैं। (पाण्डुरक्षौमवासिनीम् ) श्वेतवस्त्र धारण करने वाली । पृष्ठ 19 उपप्लुतम् )डूबी हुई। ( उष्णगे } ग्रीष्म ऋतु में ! (अक्षयम्) उपाय रहित 1 ( शारदी ) शरद ऋतु की। (परिहास्यते) भ्रष्ट होगी। पृष्ठ 20 (निराकृता) पराजित की हुई । (मलिनाम्बरा) मलिन्न वस्त्र धारण किये हुए ! (उपस्थानम् ) अपने २ घर जाना। (अतथोचिताम् ) उस दशा के अयोग्य । '२१ (जीवितमन्तरा) प्राण लिये बिना। (त्वद्विमानिता) तुझ से तिरस्कृत की हुई।