महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-188
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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पुत्रार्थं तपस्यते द्रुपदाय महादेवेन स्त्री भूत्वा पुमान्भविष्यतीति वरदानम् ।। 1 ।।
द्रुपदभार्यया स्त्र्यपत्यजननेऽपि तस्य पुंस्त्वख्यापनम् ।। 2 ।।
द्रुपदेन तस्य स्त्रीत्वं प्रच्छाद्य पुंवज्जातकर्मादिकरणपूर्वकं शिखण्डीति नामकरणम् ।। 3 ।।
दुर्योधन उवाच। | 5-188-1x |
कथं शिखण्डी गाङ्गेय कन्यां भूत्वा पुरा तदा। | 5-188-1a 5-188-1b |
भीष्म उवाच। | 5-188-2x |
भार्या तु तस्य राजेन्द्र द्रुपदस्य महीपतेः। | 5-188-2a 5-188-2b |
एतस्मिन्नेव काले तु द्रुपदो वै महीपतिः। | 5-188-3a 5-188-3b |
अस्माद्वधार्थं निश्चित्य तपो घोरं समास्थितः। | 5-188-4a 5-188-4b |
भगवन्पुत्रमिच्छामि भीष्मं प्रतिचिकीर्षया । | 5-188-5a 5-188-5b |
निवर्तस्व महीपाल नैतञ्जात्वन्यथा भवेत् । | 5-188-6a 5-188-6b |
कृतो यत्नो महादेवस्तपसाऽऽराधितो मया । | 5-188-7a 5-188-7b |
पुनः पुनर्याच्यमानो दिष्टमित्यब्रवीच्छिवः । | 5-188-8a 5-188-8b |
ततः सा नियता भूत्वा ऋतुकाले मनस्विनी । | 5-188-9a 5-188-9b |
लेभे गर्भं यथाकालं विधिदृष्टेन कर्मणा । | 5-188-10a 5-188-10b |
ततो दधार सा देवी गर्भं राजीवलोचना । | 5-188-11a 5-188-11b |
पुत्रस्नेहान्महाबाहुः मुखं पर्यचरत्तदा । | 5-188-12a 5-188-12b |
अपुत्रस्य सतो राज्ञो द्रुपदस्य महीपतेः । | 5-188-13a 5-188-13b |
कन्यां प्रवररूपां तु प्राजायत नराधिप । | 5-188-14a 5-188-14b |
ख्यापयामास राजेन्द्र पुत्रो ह्येष ममेति वै। | 5-188-15a 5-188-15b |
पुत्रवत्पुत्रकार्याणि सर्वाणि समकारयत् । | 5-188-16a 5-188-16b |
चकार सर्वयत्नेन ब्रुवणा पुत्र इत्युत । | 5-188-17a 5-188-17b |
श्रद्दधानो हि तद्वाक्यं देवस्याच्युततेजसः। | 5-188-18a 5-188-18b |
जातकर्माणि सर्वाणि कारयामास पार्थिवः। | 5-188-19a 5-188-19b |
अहमेकस्तु चारेण वचनान्नारदस्य च। | 5-188-20a 5-188-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
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