महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-124
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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धृतराष्ट्रेण श्रीकृष्णंप्रति दुर्योधनानुनयप्रार्थन ।। 1 ।।
श्रीकृष्णेन दुर्योधनानुनयः ।। 2 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-124-1x |
भगवन्नेवमेवैतद्यथा वदसि नारद। | 5-124-1a 5-124-1b |
वैशंपायन उवाच। | 5-124-2x |
एवमुक्त्वा ततः कृष्णमभ्यभाषत कौरवः । | 5-124-2a 5-124-2b |
न त्वहं स्ववशस्तात क्रियमाणं न मे प्रियम् । | 5-124-3a 5-124-3b |
अङ्ग दुर्योधनं कृष्ण मन्दं शास्त्रातिगं मम। | 5-124-4a 5-124-4b |
न श्रृणोति महाबाहो वचनं साधु भाषितम् । | 5-124-5a 5-124-5b 5-124-5c |
स त्वं पापमतिं क्रूरं पापचित्तमचेतनम् । | 5-124-6a 5-124-6b |
सुहृत्कार्यं तु सुमहत्कृतं ते स्याञ्जनार्दन ।। | 5-124-7a |
वैशंपायन उवाच। | 5-124-8x |
ततोऽभ्यावृत्य वार्ष्णेयो दुर्योधनममर्षणम् । | 5-124-8a 5-124-8b |
दुर्योधन निबोधेदं मद्वाक्यं कुरुसत्तम। | 5-124-9a 5-124-9b |
महाप्रज्ञकुले जातः साध्वेतत्कर्तुमर्हसि । | 5-124-10a 5-124-10b |
दौष्कुलेया दुरात्मानो नृशंसा निरपत्रपाः । | 5-124-11a 5-124-11b |
धर्मार्थयुक्ता लोकेऽस्मिन्प्रवृत्तिर्लक्ष्यते सताम्। | 5-124-12a 5-124-12b 5-124-12c |
अधर्मश्चानुबन्धोऽत्र घोरः प्राणहरो महान् । | 5-124-13a 5-124-13b |
तमनर्थं परिहरन्नात्मश्रेयः करिष्यसि। | 5-124-14a 5-124-14b |
अधर्म्यादयशस्याच्च कर्मणस्त्वं प्रमोक्ष्यसे ।। | 5-124-15a |
प्राज्ञैः शूरैर्महोत्साहैरात्मवद्भिर्बहुश्रुतैः। | 5-124-16a 5-124-16b 5-124-16c |
पितामहस्य द्रोणस्य विदुरस्य महामतेः । | 5-124-17a 5-124-17b |
अश्वत्थाम्नो विकर्णस्य सञ्जयस्य विविंशतेः। | 5-124-18a 5-124-18b |
शमे शर्म भवेत्तात सर्वस्य जगतस्तथा। | 5-124-19a 5-124-19b 5-124-19c |
एतच्छ्रेयो हि मन्यन्ते पिता यच्छास्ति भारत । | 5-124-20a 5-124-20b |
रोचते ते पितुस्तात पाण्डवैः सह सङ्गमः। | 5-124-21a 5-124-21c |
श्रुत्वा यः सुहृदां शास्त्रं मर्त्यो न प्रतिपद्यते । | 5-124-22a 5-124-22b |
यस्तु निःश्रेयसं वाक्यं मोहान्न प्रतिपद्यते। | 5-124-23a 5-124-23b |
यस्तु न्निःश्रेयसं श्रुत्वा प्राक्तदेवाभिपद्यते। | 5-124-24a 5-124-24b |
योऽर्थकामस्य वचनं प्रातिकूल्यान्न मृष्यते। | 5-124-25a 5-124-25b |
सतां मतमतिक्रम्य योऽसतां वर्तते मते। | 5-124-26a 5-124-26b |
मुख्यानमात्यानुत्सृज्य यो निहीनान्निषेवते । | 5-124-27a 5-124-27b |
योऽसत्सेवी वृथाचारो न श्रोता सुहृदां सताम्। | 5-124-28a 5-124-28b |
तत्वं विरुद्धा तैर्वीरैस्येतत्राणमिच्छसि । | 5-124-29a 5-124-29b |
को हि शक्रसमाञ्ज्ञातीनतिक्रम्य महारथान् । | 5-124-30a 5-124-30b |
जन्मप्रभृति कौन्तेया नित्यं विनिकृतास्त्वया । | 5-124-31a 5-124-31b |
मिथ्योपचरितास्तात जन्मप्रभृति बान्धवाः । | 5-124-32a 5-124-32b |
त्वयाऽपि प्रतिपत्तव्यं तथैव भरतर्षभ । | 5-124-33a 5-124-33b |
त्रिवर्गयुक्तः प्राज्ञानामारम्भो भरतर्षभ । | 5-124-34a 5-124-34b |
पृथक्व विनिविष्टानां धर्मं धीरोऽनुरुध्यते। | 5-124-35a 5-124-35b |
इन्द्रियैः प्राकृतो लोभाद्धर्मं विप्रजहाति यः । | 5-124-36a 5-124-36b |
कामार्थौ लिप्समानस्तु धर्ममेवादितश्चरेत्। | 5-124-37a 5-124-37b |
उपायं धर्ममेवाहुस्त्रिवर्गस्य विशांपते । | 5-124-38a 5-124-38b |
स त्वं तातानुपायेन लिप्ससे भरतर्षभ । | 5-124-39a 5-124-39b |
आत्मानं तक्षति ह्येष वनं परशुना यथा। | 5-124-40a 5-124-40b 5-124-40c |
अविच्छिन्नमतेरस्य कल्याणे धीयते मतिः। | 5-124-41a 5-124-41b |
अप्यन्यं प्राकृतं कञ्चित्किमु तान्पाण्डवर्षभान्। | 5-124-42a 5-124-42b |
छिद्यते ह्याततं सर्वं प्रमाणं पश्य भारत । | 5-124-43a 5-124-43b |
तैर्हि संप्रीपमाणस्त्वं सर्वान्कामानवाप्स्यसि। | 5-124-44a 5-124-44b |
पाण्डवान्पृष्ठतः कृत्वा त्राणमाशससऽन्वतः । | 5-124-45a 5-124-45b |
एतेष्वैश्वर्यमाधाय भूतिमिच्छसि भारत । | 5-124-46a 5-124-46b |
विक्रमे चाप्यपर्याप्तः पाण्डवान्प्रति भारत। | 5-124-47a 5-124-47b |
क्रुद्धस्य भीमसेनस्य प्रेक्षितुं मुखमाहवे। | 5-124-48a 5-124-48b |
अयं भीष्मस्तथा द्रोणः कर्णश्चायं तथा कृपः । | 5-124-49a 5-124-49b |
अशक्ताः सर्व एवैते प्रतियोद्धुं धनञ्जयम् । | 5-124-50a 5-124-50b 5-124-50c |
दृश्यतां वा पुमान्कश्चित्समग्रे पार्थिवे बले। | 5-124-51a 5-124-51b |
किं ते जनक्षयेणेह कृतेन भरतर्षभ । | 5-124-52a 5-124-52b |
यः सदेवान्सगन्धर्वान्सयक्षासुरपन्नगान् । | 5-124-53a 5-124-53b |
तथा विराटनगरे श्रूयते महदद्भुतम्। | 5-124-54a 5-124-54b |
युद्धे येन महादेवः साक्षात्सन्तोषितः शिवः । | 5-124-55a 5-124-55b 5-124-55c |
मद्द्वितीयं पुनः पार्थं कः प्रार्थयितुमर्हति । | 5-124-56a 5-124-56b |
बाहुभ्यामुद्वहेद्भूमिं दहेत्क्रुद्ध इमाः प्रजाः । | 5-124-57a 5-124-57b |
पश्य पुत्रांस्तथा भ्रातॄञ्ज्ञातीन्संबन्धिनस्तथा। | 5-124-58a 5-124-58b |
अस्तु शेषं कौरवाणां मा पराभूदिदं कुलम् । | 5-124-59a 5-124-59b |
त्वामेव स्थापयिष्यन्ति यौवराज्ये महारथाः । | 5-124-60a 5-124-60b |
मा तात श्रियमायान्तीमवमंस्थाः समुद्यताम् । | 5-124-61a 5-124-61b |
पाण्डवैः संशमं कृत्वा कृत्वा च सुहृदां वचः । | 5-124-62a 5-124-62b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-124-19 शास्त्रे शासने ।। 5-124-22 किंपाकं महाकालफलम् ।। 5-124-24 निःश्रेयसं कल्याणम् ।। 5-124-28 गौः भूमिः ।। 5-124-32 उपचरिताः प्रचारिताः ।। 5-124-35 अर्थं कलि कलहहेतम ।। 5-124-36 अनुपायन हीनोपायेन ।। 5-124-44 निर्मितां वशीकरणेनोत्पादिताम् ।। 5-124-52 यस्मिन्नर्जुने जिते सति ते तव जितं जयः स्यात् ।।
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