महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-104
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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नारदेन आर्यकंप्रति पौत्रार्थं मातलिकन्यापरिग्रहचोदनम् ।। 1 ।।
आर्यकेण नारदंप्रति सुमुखजनकं भक्षितवता वैनतेयेन मासान्तरे सुमुखभक्षणप्रतिज्ञानिवेदनम् ।। 2 ।।
मातलिना तार्क्ष्यात्सुमुखरिरक्षया सुमुखनारदाभ्यां सह शक्रसमीपगमनम् ।। 3 ।।
नारदेन मातालेकार्यं विज्ञापितेन विष्णुना सुमुखाय अमृतवितरणाज्ञापनेपि इन्द्रेण अमृताप्रदानेनैव दीर्घायुर्दानम् ।। 4 ।।
मातलिना सुमुखाय स्वकन्यां प्रदाय विवाहनिर्वर्तनम् ।। 5 ।।
कण्व उवाच। | 5-104-1x |
मातलेर्वचनं श्रुत्वा नारदो मुनिसत्तमः। | 5-104-1a 5-104-1b |
सूतोऽयं मातलिर्नाम शक्रस्य दयितः सुहृत्। | 5-104-2a 5-104-2b |
शक्रस्यायं सखा चैव मन्त्री सारथिरेव च । | 5-104-3a 5-104-3b |
अयं हरिसहस्रेण युक्तं जैत्रं रथोत्तमम् । | 5-104-4a 5-104-4b |
अनेन विजितानश्वैर्दोर्भ्यां जयति वासवः । | 5-104-5a 5-104-5b |
अस्य कन्या वरारोहा रूपेणासदृशी भुवि । | 5-104-6a 5-104-6b |
तस्यास्य यत्नाच्चरतस्त्रैलोक्यममरद्युते। | 5-104-7a 5-104-7b |
यदि ते रोचते सम्यग्भुजगोत्तम मा चिरम् । | 5-104-8a 5-104-8b |
यथा विष्णुकुले लक्ष्मीर्यथा स्वाहा विभावसोः । | 5-104-9a 5-104-9b |
पौत्रस्यार्थे भवांस्तस्माद्गुणकेशीं प्रतीच्छतु । | 5-104-10a 5-104-10b |
पितृहीनमपि ह्येनं गुणतो वरयामहे। | 5-104-11a 5-104-11b |
सुमुखस्य गुणैश्चैव शीलशौचदमादिभिः । | 5-104-12a 5-104-12b 5-104-12c |
कण्व उवाच। | 5-104-13x |
स तु दीनः प्रहृष्टश्च प्राह नारदमार्यकः । | 5-104-13a 5-104-13b |
आर्यक उवाच। | 5-104-14x |
मन्ये नैतद्बहुमतं महर्षे वचनं तव। | 5-104-14a 5-104-14b 5-104-14c |
अस्य देहकरस्तात मम पुत्रो महाद्युते। | 5-104-15a 5-104-15b |
पुनरेव च तेनोक्तं वैनतेयेन गच्छता । | 5-104-16a 5-104-16b |
ध्रुवं तथा तद्भविता जानीमस्तस्य निश्चयम्। | 5-104-17a 5-104-17b |
कण्व उवाच। | 5-104-18x |
मातलिस्त्वब्रवीदेनं बुद्धिरत्र कृता मया। | 5-104-18a 5-104-18b |
सोऽयं मया च सहितो नारदेन च पन्नगः। | 5-104-19a 5-104-19b |
शेषेणैवास्य कार्येण प्रज्ञास्वाम्यहमायुषः । | 5-104-20a 5-104-20b |
सुमुखश्च मया सार्धं देवेशमिगच्छतु। | 5-104-21a 5-104-21b |
`कण्व उवाच। | 5-104-22x |
आर्यकेणाभ्यनुज्ञाता गम्यतामिति भारत।' | 5-104-22a 5-104-22b 5-104-22c |
सङ्गत्या तत्र भगवान्विष्णुरासीच्चतुर्भुजः । | 5-104-23a 5-104-23b |
वैशंपायन उवाच। | 5-104-24x |
ततः पुरन्दरं विष्णुरुवाच भुवनेश्वरम्। | 5-104-24a 5-104-24b |
मातलिर्नारदश्चैव सुमुखश्चैव वासव। | 5-104-25a 5-104-25b |
पुरन्दरोऽथ संचिन्त्य वैनतेयपराक्रमम् । | 5-104-26a 5-104-26b |
विष्णुरुवाच। | 5-104-27x |
ईशस्त्वं सर्वलोकानां चराणामचराश्च ये। | 5-104-27a 5-104-27b |
प्रादाच्छक्रस्ततस्तस्मै पन्नगायायुरुत्तमम्। | 5-104-28a 5-104-28b |
लब्ध्वा वरं तु सुमुखः सुमुखः संबभूव ह। | 5-104-29a 5-104-29b |
नारदस्त्वार्यकश्चैव कृतकार्यौ मुदा युतौ । | 5-104-30a 5-104-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-104-20 अस्यायुषः शेषेण कार्येण प्रज्ञास्यामि विज्ञापयिष्यामि ।।
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