महाभारतम्-04-विराटपर्व-073
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीमार्जुनादिभी रात्रौ युधिष्ठिरसमीपगमनम् ।। 1 ।। युधिष्ठिरेण सहर्षं स्वानभिभाषणे अर्जुनेन भीमंप्रति तत्कारणप्रश्नः ।। 2 ।। युधिष्ठिरेण तं प्रति विराटेनाक्षताडनस्य तत्कारणत्वकथनम् ।। 3 ।। भीमादिभिः क्रोधाद्विराटवधाध्यवसाये युधिष्ठिरेण हेतुकथनेन तत्प्रतिषेधनम् ।। 4 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-73-1x |
प्रदाय वस्त्राणि किरीटमाली | 4-73-1a 4-73-1b 4-73-1c 4-73-1d |
तं प्रेक्षमाणस्त्वथ धर्मराजं | 4-73-2a 4-73-2b 4-73-2c 4-73-2d |
तमेवमुक्त्वा परिशङ्कमानं | 4-73-3a 4-73-3b 4-73-3c 4-73-3b |
मन्युं नियच्छन्नुपविष्ट आसम् ।। | 4-73-4f |
शुभार्ह राष्ट्रं न खिलीकृतं भवे- | 4-73-5a 4-73-5b 4-73-5c 4-73-5d |
अजानता तेन च शौर्यमाजौ | 4-73-6a 4-73-6b 4-73-6c 4-73-6d |
वैशंपायन उवाच | 4-73-7x |
तेनाप्रमेयेन महाबलेन | 4-73-7a 4-73-7b 4-73-7c 4-73-7d |
न पार्थ नित्यं क्षमकालमाह | 4-73-8a 4-73-8b 4-73-8c 4-73-8d |
विराटमद्यैव निहत्य शीघ्रं | 4-73-9a 4-73-9b 4-73-9c 4-73-9d |
अनेन पाञ्चालसुताऽथ कृष्णा | 4-73-10a 4-73-10b 4-73-10c 4-73-10d |
राजा कुरूणां च युधिष्ठिरोऽयं | 4-73-11a 4-73-11b 4-73-11c 4-73-11d |
अर्जुन उवाच। | 4-73-12x |
भवतः क्षमया राजन्त्सर्वे दोषाश्च नोऽभवन्। | 4-73-12a 4-73-12b 4-73-12c |
भीमसेनश्च ये चान्ये तथैवेति तमब्रुवन् ।। | 4-73-13a |
तमब्रवीद्धर्मसुतो महात्मा | 4-73-14a 4-73-14b 4-73-14c 4-73-14d |
न हन्तव्यो दुरात्माऽयं विराटश्चापि तेऽर्जुन ।। | 4-73-15a |
श्वः प्रभाते प्रवेक्ष्यामः सभां सिंहासनेष्वपि। | 4-73-16a 4-73-16b |
विराटो यदि तत्रस्थान्राजालङ्कारशोभितान्। | 4-73-17a 4-73-17b 4-73-17c |
इतिकर्तव्यतां सर्वे मन्त्रयित्वा तु पाण्डवाः। | 4-73-18a 4-73-18b |
सहपुत्रेण मात्स्यः स संप्रहृष्टो नराधिपः । | 4-73-19a 4-73-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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