महाभारतम्-04-विराटपर्व-038
← विराटपर्व-037 | महाभारतम् चतुर्थपर्व महाभारतम्-04-विराटपर्व-038 वेदव्यासः |
विराटपर्व-039 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
उत्तरे समुचितसारथेरभावेन खिद्यमाने अर्जुनेन द्रौपदींप्रति उत्तराय बृहन्नलायाः सारथ्यकौशलनिवेदनचोदना ।। 1 ।। भ्रातॄचोदितया उत्तरया बृहन्नलांप्रति उत्तररथसारध्यकरणप्रार्थना ।। 2 ।। उत्तरेण सारथीभूतेनार्जुनेन सह कुरून्प्रति रणायाभियानम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-38-1x |
महाजनसमक्षं तु स्त्रीणां मध्ये विशेषतः । | 4-38-1a 4-38-1b |
स्त्रीमध्य उक्तस्तेनासौ वाक्यं तेजःप्रवर्धनम्। | 4-38-2a 4-38-2b |
उत्तर उवाच। | 4-38-3x |
अद्याहमनुगच्छेयं दृढधन्वा गवां पदम्। | 4-38-3a 4-38-3b |
तमेव नाधिगच्छामि यो मे यन्ता समो भवेत् । | 4-38-4a 4-38-4b |
अष्टाविंशतिरात्रं वा मासं वा नूनमन्ततः । | 4-38-5a 4-38-5b |
यद्यहं त्वधिगच्छेयं यो मे यन्ता भवेद्युधि । | 4-38-6a 4-38-6b |
विगाह्य तत्परानीकं गजवाजिरथाकुलम् । | 4-38-7a 4-38-7b |
दुर्योधनं विकर्णं च कर्णं वैकर्तनं कृपम्। | 4-38-8a 4-38-8b |
विद्रावयित्वा संग्रामे दानवान्मघवानिव । | 4-38-9a 4-38-9b |
शून्यमाज्ञाय कुरवः प्रयान्त्यादाय गोधनम् । | 4-38-10a 4-38-10b |
पश्ययुरद्य मे वीर्यं कुरवस्ते समागताः । | 4-38-11a 4-38-11b |
वैशंपयान उवाच। | 4-38-12x |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा स्त्रीषु चात्मप्रशंसनम् । | 4-38-12a 4-38-12b |
श्रुत्वा तदर्जुनो वाक्यमुत्तरेण प्रभाषितम्। | 4-38-13a 4-38-13b |
द्रुपदस्य सुतां राज्ञः पाञ्चालीं रूपसंमताम् । | 4-38-14a 4-38-14b 4-38-14c |
उत्तरां ब्रूहि पाञ्चालि गत्वा क्षिप्रं शुचिस्मिते ।। 15 ।। | 4-38-15a |
इयं किल पुरा युद्धे खाण्डवे सव्यसाचिनः । | 4-38-16a 4-38-16b 4-38-16c |
वैशंपायन उवाच। | 4-38-17x |
सा चोदिता तदा ह्येन ह्यर्जुनेन शुचिस्मिता। | 4-38-17a 4-38-17b |
ज्ञात्वा तु समयान्मुक्तं चन्द्रं राहुमुखादिव । | 4-38-18a 4-38-18b |
अमर्षयन्ती तद्दुःखं कृष्णा कमललोचना। | 4-38-19a 4-38-19b |
योऽयं युवा वारणयूथपोपमो बृहन्नलाऽस्मीति जनोऽभ्यभाषत। | 4-38-20a 4-38-20b |
एतेन वा सारथिना तदाऽर्जुनः सदेवगन्धर्वमहासुरोरगान् । | 4-38-21a 4-38-21b |
यदस्य संस्थामपि तस्य संयुगे जानामि वीर्यं परवीरमध्यगम् । | 4-38-22a 4-38-22b |
न सर्वभूतानि न देवदानवा न चापि सर्वे कुरवः समागताः। | 4-38-23a 4-38-23b |
धनुष्यनवमश्चासीत्तस्य शिष्यो महात्मनः । | 4-38-24a 4-38-24b |
स चानेन सहायेन खाण्डवं चादहत्पुरा । | 4-38-25a 4-38-25b |
तेन सारथिना पार्थः सर्वभूतानि सर्वशः। | 4-38-26a 4-38-26b |
वैशंपायन उवाच। | 4-28-27x |
ततः सैरन्ध्रिसहिता उत्तरा भ्रातुरब्रवीत्। | 4-38-27a 4-38-27b |
शिक्षितैषा हि सारथ्ये नर्तने गीतवादिते । | 4-38-28a 4-38-28b |
उत्तर उवाच। | 4-38-29x |
सैरन्ध्रि जानासि मम व्रतं हि क्लीबेन पुंसा न हि संवदाम्यहम्। | 4-38-29a 4-38-29b |
सैरन्ध्र्युवाच। | 4-38-30x |
भयकाले तु संप्राप्ते न व्रतं नाव्रतं पुनः। | 4-38-30a 4-38-30b 4-38-30c |
येयं कुमारी सुश्रोणी भगिनी ते यवीयसी। | 4-38-31a 4-38-31b |
यदि ते सारथिः सा स्यात्कुरून्सर्वान्न संशयः। | 4-38-32a 4-38-32b |
वैशंपायन उवाच। | 4-38-33x |
एवमुक्तः स सैरन्ध्र्या भगिनीं प्रत्यभाषत। | 4-38-33a 4-38-33b |
सा प्राद्रवत्काञ्चनमाल्यधारिणी ज्येष्ठेन भ्रात्रा प्रहिता यशस्विनी । | 4-38-34a 4-38-34b |
सा वज्रमुक्तामणिहेमकुण्डला मृदुक्रमा भ्रातृनियोगचोदिता। | 4-38-35a 4-38-35b |
तन्वी समाङ्गी मृदुमन्द्रलोचना मात्स्यस्य राज्ञो दुहिता विलासिनी । | 4-38-36a 4-38-36b |
सा नागनासोपमसंहितोरूरनिन्दिता वेदिविलग्नमध्या। | 4-38-37a 4-38-37b |
तामागतामायतताम्रलोचनामवेक्ष्य पार्थः समयेऽभ्यभाषत ।। 38 ।। | 4-38-38a |
किमागता काञ्चनमाल्यधारिणी सुगात्रि किंचित्त्वरिताऽसि सुभ्रु । | 4-38-39a 4-38-39b |
वैशंपायन उवाच। | 4-38-40x |
सा वज्रवैडूर्यविकारकुण्डला विनिद्रपद्मोत्पलपन्नगन्धिनी । | 4-38-40a 4-38-40b |
उत्तरोवाच। | 4-38-41x |
हरन्ति वित्तं कुरवाः पितुर्मे शतं सहस्राणि गवां बृहन्नले। | 4-38-41a 4-38-41b |
सैरन्ध्रिराख्याति बृहन्नले त्वां सुशिक्षिता संग्रहणे रथाश्वयोः । | 4-38-42a 4-38-42b |
वैशंपायन उवाच। | 4-38-43x |
तथा नियुक्तो नरदेवकन्यया नरोत्तमः प्रीतमना धनञ्जयः। | 4-38-43a 4-38-43b |
गच्छामि यत्रेच्छसि चारुहासिनि हुताशनं प्रज्वलितं विशामि वा। | 4-38-44a 4-38-44b 4-38-44c |
वैशंपायन उवाच । | 4-38-45x |
एतावदुक्त्वा कुरुवीरपुङ्गवो विलासिनीं शुक्लदतीं शुचिस्मिताम्। | 4-38-45a 4-38-45b |
तथा व्रजन्तं वरभूषणैर्वृतं महाप्रभं वारणयूथपोपमम्। | 4-38-46a 4-38-46b |
तमागतं पार्थममित्रकर्शनं महाबलं नागमिव प्रमाथिनम्। | 4-38-47a 4-38-47b |
तमाव्रजन्तं त्वरितं प्रभिन्नमिव कुञ्जरम्। | 4-38-48a 4-38-48b |
दूरादेव तु संप्रेक्ष्य राजपुत्रोऽभ्यभाषत । | 4-38-49a 4-38-49b |
पृथिवीं चाजयत्कृत्स्नां कुन्तीपुत्रो धनञ्जयः। | 4-38-50a 4-38-50b |
देवेन्द्रसारथिर्वीरो मातलिः ख्यातविक्रमः । | 4-38-51a 4-38-51b |
सुमन्त्रो वा दाशरथेः सूर्ययन्ता तथाऽरुणः। | 4-38-52a 4-38-52b |
इत्युक्तोऽहं च सैरन्ध्र्या तेन त्वामाह्वयामि वै । | 4-38-53a 4-38-53b |
दूराद्दूरतरं गावो भवन्ति कुरुभिर्हृताः। | 4-38-54a 4-38-54b |
का शक्तिर्मम सारथ्यं कर्तुं संग्राममूर्धनि । | 4-38-55a 4-38-55b 4-38-55c |
उत्तर उवाच। | 4-38-56x |
त्वं नर्तको वा यदि वाऽपि गायकः क्षिप्रं तनुत्रं परिधत्स्व भानुमत्। | 4-38-56a 4-38-56b |
वैशंपायन उवाच। | 4-38-57x |
इत्येवमुक्त्वा नृपसूनुसत्तमस्तदा स्मयित्वाऽर्जुनमभ्यनन्दयत्। | 4-38-57a 4-38-57b |
बृहन्नलायै प्रददौ स्वयं तदा विराटपुत्रः परवीरघातिने। | 4-38-58a 4-38-58b |
बृहन्नलोवाच। | 4-38-59x |
यद्यस्ति च रणे शौर्यं शक्यः स्याद्द्विषतां वधः। | 4-38-59a 4-38-59b |
वैशंपायन उवाच। | 4-38-60x |
ततः स नर्मसंयुक्तमकरोत्पाण्डवो बहु। | 4-38-60a 4-38-60b |
तमाददानं प्रमदा जहासिरे ह्यधोमुखं वीरवरोऽभ्यधारयत्। | 4-38-61a 4-38-61b |
सम्यक्प्रजानन्नपि सत्यविक्रमो ह्यज्ञातवत्सर्वकुरुप्रवीरः। | 4-38-62a 4-38-62b |
एवंप्रकाराणि बहूनि कुर्वति तस्मिन्कुमार्यः प्रमदा जहासिरे । | 4-38-63a 4-38-63b |
तं राजपुत्रः समनाहयत्स्वयं जाम्बूनदान्तेन शुभेन वर्मणा। | 4-38-64a 4-38-64b |
अथास्य शीघ्रं प्रसमीक्ष्य भोजयद्रथे हयान्काञ्चनजालसंवृतान्। | 4-38-65a 4-38-65b |
धनूंषि च विचित्राणि बाणांश्च रुचिरान्बहून्। | 4-38-66a 4-38-66b |
आरुह्य प्रययौ वीरः सबृहन्नलसारथिः। | 4-38-67a 4-38-67b |
बृहन्नले आनयेथा वासांसि रुचिराणि नः। | 4-38-68a 4-38-68b 4-38-68c |
अथ ता ब्रुवतीः कन्याः सहिताः कुरुनन्दनः। | 4-38-69a 4-38-69b |
यद्युत्तरोऽयं संग्रामे विजेष्यति महारथान् । | 4-38-70a 4-38-70b |
वैशंपायन उवाच। | 4-38-71x |
अथोत्तरो वर्म महाप्रभावं सुवर्णवैडूर्यपरिष्कृतं शुभम्। | 4-38-71a 4-38-71b |
तमुत्तरं प्रेक्ष्य रथोत्तमे स्थितं बृहन्नलां चैव महाजनस्तदा। | 4-38-72a 4-38-72b |
यदर्जुनस्यर्षभतुल्यगामिनः पुराऽभवत्खाण्डवदाहमङ्गलम् । | 4-38-73a 4-38-73b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
4-38-35 शिखण्डिनी मयूरपिच्छालंकारवती ।। 35 ।।
विराटपर्व-037 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | विराटपर्व-039 |