महाभारतम्-04-विराटपर्व-034
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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विराटसुशर्मसैन्ययौर्युद्धम् ।। 1 ।। युधिष्ठिरादिनिहतानां परिसह्ख्यानम् ।। 2 ।। विराटसुशर्मणोर्युद्धम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-34-1x |
निर्याय नगराच्छूरा व्यूढानीकाः प्रहारिणः। | 4-34-1a 4-34-1b |
ते त्रिगर्ताश्च मात्स्याश्च व्यूढानीकाः प्रहारिणः। | 4-34-2a 4-34-2b |
भीमाश्च मत्तमातङ्गास्तोमराङ्कुशचोदिताः। | 4-34-3a 4-34-3b |
तेषां समागमो घोरस्तुमुलो रोमहर्षणः। | 4-34-4a 4-34-4b |
देवासुरसमो राजन्नासीत्सूर्येऽबलम्बति । | 4-34-5a 4-34-5b |
अन्योन्यमभ्यापततां निघ्नतां चेतरेतरम् । | 4-34-6a 4-34-6b |
पक्षिणश्चापतन्भूमौ सैन्येन रजसा वृताः । | 4-34-7a 4-34-7b |
खद्योतैरिव संयुक्तमन्तरिक्षमजायत।। 8 ।। | 4-34-8a |
रुक्मपृष्ठानि चापानि विचेरुर्विद्युतो यथा । | 4-34-9a 4-34-9b |
रथा रथैः समाजग्मुः पत्तयश्च पदातिभिः । | 4-34-10a 4-34-10b |
असिभिः पट्टसैश्चापि शक्तिभिस्तोमरैरपि । | 4-34-11a 4-34-11b |
निघ्नन्तः समरेऽन्योन्यं हृष्टाः परिघपाणयः । | 4-34-12a 4-34-12b |
रक्ताधरोष्ठं सुनसं क्लृप्तश्मश्रु स्वलंकृतम्। | 4-34-13a 4-34-13b |
दृश्यन्ते तत्र गात्राणि वीरैश्छिन्नानि सर्वशः । | 4-34-14a 4-34-14b |
नागभोगनिकाशैश्च बाहुभिश्चन्दनोक्षितैः। | 4-34-15a 4-34-15b |
यथा वा वाससी श्लक्ष्णे महारजतरञ्जिते। | 4-34-16a 4-34-16b |
उपाशाम्यद्रजो भौमं रुधिरेण प्रवर्षता। | 4-34-17a 4-34-17b |
युधिष्ठिरोऽपि धर्मात्मा भ्रातृभिः सहितस्तदा। | 4-34-18a 4-34-18b |
आत्मानं श्येनवत्कृत्वा तुण्डमासीद्युधिष्ठिरः। | 4-34-19a 4-34-19b |
सहस्रं न्यहनत्तत्र कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। | 4-34-20a 4-34-20b 4-34-20c |
नकुलस्त्रिशतं जघ्ने सहदेवश्चतुःशतम् । | 4-34-21a 4-34-21b |
प्रहृष्टां महतीं सेनां त्रिगर्तानां महाबलौ । | 4-34-22a 4-34-22b |
लक्षयित्वा त्रिगर्तानां तौ प्रविष्टौ महाचमूम्। | 4-34-23a 4-34-23b |
शङ्खो विराटपुत्रश्च महेष्वासो महाबलः। | 4-34-24a 4-34-24b |
विराटस्तत्र संग्रामे हत्वा पञ्चशतं रथान्। | 4-34-25a 4-34-25b |
चरन्स विविधान्मार्गान्रथेन रथिनांवरः। | 4-34-26a 4-34-26b |
तौ तु प्राहरतां तत्र महेष्वासौ महाबलौ । | 4-34-27a 4-34-27b |
राजसिंहौ सुसंरब्धौ विरेजतुरमर्षणौ। | 4-34-28a 4-34-28b |
ततो रथाभ्यां रथिनौ व्यतीयातां समन्ततः । | 4-34-29a 4-34-29b |
अन्योन्यमभिसंरब्धौ दन्ताभ्यामिव कुञ्जरौ। | 4-34-30a 4-34-30b |
मात्स्यो राजा सुशर्माणं विव्याध निशितैः शरैः । | 4-34-31a 4-34-31b |
द्वाभ्यां सूतं च विव्याध केतुं च त्रिभिराशुगैः । | 4-34-32a 4-34-32b 4-34-32c |
तयोर्बलानि राजेन्द्र समस्तानि महारणे। | 4-34-33a 4-34-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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