महाभारतम्-04-विराटपर्व-013
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सहदेवेन गोपालवेषधारणेन विराटंप्रति गमनम् ।। 1 ।।
विराटेन सहदेवस्य गोपालने नियोजनम् ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-13-1x |
अथापरोऽदृश्यत वै शशी यथा हुतो हविर्भिर्हि यथाऽध्वरे शिखी। | 4-13-1a 4-13-1b |
तमाव्रजन्तं सहदेवमग्रणीर्नृपो विराटो नचिरात्समैक्षत। | 4-13-2a 4-13-2b 4-13-2c |
यष्ट्या प्रमाणान्वितया सुदर्शनं दामानि पाशं च निबद्ध्य पृष्ठतः। | 4-13-3a 4-13-3b |
स चापि राजानमुवाच वीर्यवान्कुरुष्व मां पार्थिव गोष्ववस्थितम्। | 4-13-4a 4-13-4b |
न श्वापदेभ्यो न च रोगतो भयं न चापि दावान्न च तस्कराद्भयम्। | 4-13-5a 4-13-5b |
निशम्य राजा सहदेवभाषितं निरीक्ष्य माद्रीसुतमभ्यनन्दत्। | 4-13-6a 4-13-6b |
धैर्याद्वपुः क्षात्रमिवेह ते दृढं प्रकाशते कौरववंशजस्य वा। | 4-13-7a 4-13-7b |
प्रशाधि मत्स्यान्सहराजकानिमान्बृहस्पतिः शत्रुयुतानिवामरान्। | 4-13-8a 4-13-8b |
अनीककर्णाग्रधरो बलस्य मे प्रभुर्भवानस्तु गृहाण कार्मुकम् ।। 9 । | 4-13-9a |
वैशंपायन उवाच। | 4-13-10x |
विराटराज्ञाऽभिहितः कुरूत्तमः प्रशस्य राजानमभिप्रणम्य च। | 4-13-10a 4-13-10b |
बालो ह्यहं जातिविशेषदूषितः कुतोऽद्य मे नीतिषु युक्तमन्त्रता । | 4-13-11a 4-13-11b |
वैश्योस्मि नाम्नाऽहमरिष्टनेमिर्गोसङ्ख्य आसं कुरुपुङ्गवानाम् । | 4-13-12a 4-13-12b |
न जीवितुं शक्यमतोऽन्यकर्मणा न च त्वदन्यो मम रोचते विभो ।। 13 ।। | 4-13-13a |
विराट उवाच। | 4-13-14x |
त्वं ब्राह्मणो वा यदि वाऽपि भूमिपः समुद्रनेमीश्वररूपवानसि। | 4-13-14a 4-13-14b |
कस्यामि राज्ञो विषयादिहागतः किं चापि शिल्पं तव विद्यते कृतम्। | 4-13-15a 4-13-15b |
सहदेव उवाच। | 4-13-16x |
पञ्चानां पाण्डुपुत्राणां ज्येष्ठो राजा युधिष्ठिरः। | 4-13-16a 4-13-16b |
अपरे दशसाहस्रा द्विस्तावन्तस्तथा परे। | 4-13-17a 4-13-17b |
भूतं भव्यं भविष्यच्च यच्चान्यद्गोगतं क्वचित्। | 4-13-18a 4-13-18b |
गुणाः सुविदिता ह्यासन्मया तस्य महात्मनः। | 4-13-19a 4-13-19b |
अनेन गणिता गावो दुर्विज्ञेया महत्तराः। | 4-13-20a 4-13-20b |
क्षिप्रं च गावो बहुला भवन्ति न तासु रोगो भवतीह कश्चित्। | 4-13-21a 4-13-21b |
ऋषभानपि जानामि राजन्पूजितलक्षणान्। | 4-13-22a 4-13-22b |
वैशंपायन उवाच। | 4-13-23x |
मत्स्याधिपो हर्षकलेन चेतसा माद्रीसुतं पाण्डवमभ्यभाषत। | 4-13-23a 4-13-23b |
अथ त्विदानीं तव रोचते विभो यथेष्टतो गव्यमवेक्ष मामकम्। | 4-13-24a 4-13-24b |
शतं सहस्राणि गवां हि सन्ति वर्णस्यवर्णस्य पृथग्गणानाम्। | 4-13-25a 4-13-25b |
वैशंपायन उवाच। | 4-13-26x |
एवं विराटेन समेत्य पाण्डवो लब्ध्वा च गोबल्लवतां यथेष्टतः। | 4-13-26a 4-13-26b |
एवं विराटे न्यवसंश्च पाण्डवा यथा प्रतिज्ञाभिरमोघविक्रमाः । | 4-13-27a 4-13-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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