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पृष्ठम्:श्रुतबोधः.djvu/५७

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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
५५
परिशिष्टम् -


अथ छंदोऽभ्यास विधिः।


 कविशिक्षा शतं वीक्ष्य कवीन्द्रान् उपजीव्य च ।
 कथ्यते केऽपि शब्दा यैश्छन्दो मन्दोऽपि विन्दति ॥१॥

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 भाषा-कवि लोगों के शिक्षाओं को देखकर ओर कवि लोगों की सेवा कर कुछ शब्दों को कहता हूँ जिस से मन्द मनुष्य छन्दों का अभ्यास सुगम रीति से कर सकते हैं।


 श्रीलक्ष्मीः कमला पद्मालया च हरिवल्लभा ।
 दुग्धाब्धिनन्दिनी क्षीरसागरापत्यमित्यपि ॥२॥
 क्षीरपाथोधितनयेत्येवमेकाक्षरादिकम् ।
 आदौ साध्यं पदं स्थाप्यं शेषं कुर्याद्विशेषणम् ॥३॥

 भाषा-लक्ष्मी के एकाक्षर से, आठ अक्षर तक ये नाम हैं, छन्द का अभ्यास करने में पहिले जिसका वर्णन करना हो उसको रक वे पश्चात् उसको विशेषणों से युक्त करें-


 विशेष्योऽर्थो वर्णकाराधाराधेयक्रियागुणैः ।
 सादृश्यपरिवाराद्यैः क्रियते सविशेषणैः ॥ ४ ॥

 भाषा-विशेष्य अर्थ वर्ण, आकार, आधार, आधेय, क्रिया, गुण, सादृश्य इत्यादिक से युक्त करना चाहिये।