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पृष्ठम्:श्रुतबोधः.djvu/५६

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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
५४
परिशिष्टम्


गणनाम देवताफलानि ५

 मो भूमिः श्रियमातनोति यजलं वद्धिंरं वन्हिर्मृतिम् । सो वायुः परदेशदूरगमनं तव्योम शून्यं फलम्। जः सूर्यो भयमाददाति विपुलं भेन्दुर्यशो निर्मलं नो नाकश्च सुखपदः फलमिदं प्राहुर्गणानां बुधाः।

 भाषा मगण की देवता भूमि है, वह लक्ष्मी का विस्तार करती है यगण की देवता जल, वह वृद्धिकता है, रगण की देवता अग्नि है, वह मृत्यु देती है । सगण की देवना वायु है, वह परदेश गमन कराता है,तगण की देवता आकाश है, फल शुन्य है। जगण की देवता सूर्य है वह रोग देता है। भगण की देवता चन्द्रमा है, वह निर्मल भय देता है। नगण की देवता स्वर्ग है, वह सुख देता है इस प्रकार पंडितोंने गणों का फल वर्णन किया है जैसा निम्न लिखित चक्र से ज्ञात होगा। संख्या गणनाम देवता मगण भूमि लक्ष्मीलाभ यगण वरुण प्रारब्धोदय अग्नि मृत्यु वायु विदेशगमन आकाश निष्फलता वा राज्यलाभ फल SSS २ ISS w रगण SIS ४ Il s सगण SSI ६ तगण सूर्य जगण भय IS! भगण ८ कीर्तिलाम SII सुख तथा स्वर्गलाम। ॥ नगण स्वर्ग