महाभारतम्-18-स्वर्गारोहणपर्व-001
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स्वर्गं गतेन युधिष्ठिरेण तत्र महासमुच्छ्रयेण शोभमानदुर्योधनदर्शनम्।। 1 ।।
तथा तदुस्कर्षासहिष्णुतया तदीयदोषो द्धाटनेन तेन सह स्वन स्वर्गवासानभिरोचननिवेदनपूर्वकं नारदंप्रति स्वस्य भ्रात्रादिदिदृक्षानिवेदनम्।। 2 ।।
श्रीवेदव्यासाय नमः। | 18-1-1x |
नारायणं नस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। | 18-1-1a 18-1-1b |
जनमेजय उवाच। | 18-1-1x |
स्वर्गं त्रिविष्टपं प्राप्य मम पूर्वपितामहाः। पाण्डवा धार्तराष्ट्राश्च कानि स्थानानि भेजिरे।। | 18-1-1a 18-1-1b |
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं सर्वविच्चासि मे मतः। महर्षिणाऽभ्यनुज्ञातो व्यासेनाद्भुतकर्मणा।। | 18-1-2a 18-1-2b |
वैशम्पायन उवाच। | 18-1-3x |
स्वर्गं त्रिविष्टपं प्राप्य तव पूर्वपितामहाः। युधिष्ठिरप्रभृतयो यदकुर्वत तच्छृणु।। | 18-1-3a 18-1-3b |
स्वर्गं त्रिविष्टपं प्राप्य धर्मराजो युधिष्ठिरः। दुर्योधनं श्रिया जुष्टं ददर्शासीनमासने।। | 18-1-4a 18-1-4b |
भ्राजमानमिवादित्यं वीरलक्ष्म्याऽभिसंवृतम्। देवैर्भ्राजिष्णुभिः साध्यैः सहितं पुण्यकर्मभिः।। | 18-1-5a 18-1-5b |
ततो युधिष्ठिरो राजा दुर्योधनममर्षितः। सहसा सन्निवृत्तोऽभूच्छ्रियं दृष्ट्वा सुयोधने।। | 18-1-6a 18-1-6b |
ब्रुवन्नुच्चैर्वचस्तान्वै नाहं दुर्योधनेन वै। सहितः कामये लोकाँल्लब्धेनादीर्घदर्शिना।। | 18-1-7a 18-1-7b |
यत्कृते पृथिवी सर्वा सुहृदो बान्धवास्तथा। हतास्माभिः प्रसह्याजौ किल्ष्टैः पूर्वं महावने।। | 18-1-8a 18-1-8b |
द्रौपदी च सभामध्ये पाञ्चाली धर्मचारिणी। पर्याकृष्टाऽनवद्याङ्गी पत्नी नो गुरुसन्निधौ।। | 18-1-9a 18-1-9b |
अस्ति देवा न मे कामः सुयोधनमुदीक्षितुम्। तत्राहं गन्तुमिच्छामि यत्र ते भ्रातरो मम।। | 18-1-10a 18-1-10b |
नैवमित्यब्रवीत्तं तु नारदः प्रहसन्निव। स्वर्गे निवासे राजेन्द्र विरुद्धं चापि नश्यति।। | 18-1-11a 18-1-11b |
युधिष्ठिर महाबाहो मैवं वोचः कथञ्चन। दुर्योधनं प्रति नृपं शृणु चेदं वचो मम।। | 18-1-12a 18-1-12b |
एष दुर्योधनो राजा पूज्यते त्रिदशैः सह। सद्भिश्च राजप्रवरैते इमे स्वर्गवासिनः। | 18-1-13a 18-1-13b |
वीरलोकगतिं प्राप्ता युद्धे हुत्वाऽऽत्मनस्तनुम्। यूयं सर्वे सुरसमा येन युद्धेन बाधिताः।। | 18-1-14a 18-1-14b |
स एष क्षत्रधर्मेण स्थानमेतदवाप्तवान्। भये महति योऽभीतो बभूव पृथिवीपतिः।। | 18-1-15a 18-1-15b |
न तन्मनसि कर्तव्यं पुत्र यद्द्यूतकारितम्। द्रौपद्याश्च परिक्लेशं न चिन्तयितुमर्हसि।। | 18-1-16a 18-1-16b |
ये चान्येऽपि परिक्लेशा युष्माकं ज्ञातिकारिताः। संग्रामेष्वथवाऽन्यत्र न तान्संस्मर्तुमर्हसि।। | 18-1-17a 18-1-17b |
समागच्छ यथान्यायं राज्ञा दुर्योधनेन वै। स्वर्गोऽयं नेह वैराणि भन्ति मनुजाधिप।। | 18-1-18a 18-1-18b |
नारदेनैवमुक्तस्तु कुरुराजो युधिष्ठिरः। भ्रातॄन्पप्रच्छ मेधावी वाक्यमेतदुवाच ह।। | 18-1-19a 18-1-19b |
यदि दुर्योधनस्यैते वीरलोकाः सनातनाः। अधर्मज्ञस्य पापस्य पृथिवीसुहृदद्रुहः।। | 18-1-20a 18-1-20b |
यत्कृते पृथिवी नष्टा सहसा सनरद्विपा। वयं च मन्युना दग्धा वैरं प्रतिचिकीर्षवः।। | 18-1-21a 18-1-21b |
ये ते वीरी महात्मानो भ्रातरो मे महाव्रताः। सत्यप्रतिज्ञा लोकस्य शूरा वै सत्यवादिनः। तेषामिदानीं के लोका द्रष्टुमिच्छामि तानहम्।। | 18-1-22a 18-1-22b 18-1-22c |
कर्णं चैव महात्मानं कौन्तेयं सत्यसङ्गरम्। धृष्टद्युम्नं सात्यकिं च धृष्टद्युम्नस्य चात्मजान्।। | 18-1-23a 18-1-23b |
ये च शस्त्रैर्वधं प्राप्ताः क्षत्रधर्मेण पार्थिवाः। क्वनु ते पार्थिवान्ब्रह्मन्नैतान्पश्यामि नारद।। | 18-1-24a 18-1-24b |
विराटद्रुपदौ चैव धृष्टकेतुमुखांश्च तान्। शिखण्डिनं च पाञ्चाल्यं द्रौपदेयांश्च सर्वशः। अभिमन्युं च दुर्धर्षं द्रष्टुमिच्छामि नारद।। | 18-1-25a 18-1-25b 18-1-25c |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्वर्गारोहणपर्वणि प्रथमोऽध्यायः।। 1 ।। |
18-1-1 त्रीणि विष्टपानि भुवनानि फलोत्कर्षवशाद्यत्रान्तर्भवन्ति तादृशं स्वर्गं प्राप्य।। 18-1-6 तत इति। स्वर्गेऽप्यमर्षो दुस्त्यज इति संस्काराणां प्राबल्यमुक्तम्।। 18-1-9 हताः अस्माभिः संधिरार्षः।। 18-1-11 विरुद्धं वैरादिकं नश्यति अन्तर्धीयते।। 18-1-20 सुहृद इत्यदन्तः शब्दः।।
स्वर्गारोहणपर्व | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | स्वर्गारोहणपर्व-002 |