महाभारतम्-18-स्वर्गारोहणपर्व-003
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तत्रैवावस्थानपरीक्षया परितुष्टेषु यमेन्द्रादिषु युधिष्ठिरसमीपमुपागतेषु तद्दृष्टपूर्वनरकादीनां क्षणेनान्तर्धानम्।। 1 ।।
धर्मेण युधिष्ठिरंप्रति सप्रशंसनं तद्दृष्टनरकस्य परीक्षणायेन्द्रमायासृष्टत्वकथनम्। 2 ।।
ततो युधिष्ठिरेण गङ्गायामवागाहनान्मानुषशरीरपरित्यागपूर्वकं दिव्यशरीरपरिग्रहणेन महर्ष्यादिभिः स्तूयमानेन सता सहदेवैर्भ्रात्राद्यधिष्ठितदिव्यस्थानगमनम्।। 3 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 18-3-1x |
स्थिते मुहूर्तं पार्थे तु धर्मराजे युधिष्ठिष्ठिरे। आजग्मुस्तत्र कौरव्यं देवाः शक्रपुरोगमाः।। | 18-3-1a 18-3-1b |
स च विग्रहवान्धर्मो राजानं संपरीक्ष्य तम्। तत्राजगाम यत्रासौ कुरुराजो युधिष्ठिरः।। | 18-3-2a 18-3-2b |
तेषु भासुरदेहेषु पुण्याभिजनकर्मसु। समागतेषु देवेषु व्यगमत्तत्तमो नृप।। | 18-3-3a 18-3-3b |
नादृश्यन्त च तास्तत्र यातनाः पापकर्मणाम्। नदी वैतरणी चैव कूटशाल्मलिना सह।। | 18-3-4a 18-3-4b |
लोहकुंभ्यः शिलाश्चैव नादृश्यन्त भयानकाः। विकृतानि शरीराणि यानि तत्र समन्ततः।। | 18-3-5a 18-3-5b |
ददर्श राजा कौरव्यस्तान्सर्वान्सुमहाप्रभान्।। | 18-3-6a |
ततो वायुः सुखस्पर्शः पुण्यगन्धवहः शुचिः। ववौ देवसमीपस्थः शीतलोऽतीव भारत।। | 18-3-7a 18-3-7b |
मरुतः सह शक्रेण वसवश्चाश्विनौ सह। साध्या रुद्रास्तथाऽऽदित्या ये चान्येऽपिदिवौकसः। | 18-3-8a 18-3-8b |
सर्वे तत्र समाजग्मुः सिद्धाश्च परमर्षयः। यत्र राजा महातेजा धर्मपुत्रः स्थितोऽभवत्।। | 18-3-9a 18-3-9b |
ततः शक्रः सुरपतिः श्रिया परमया युतः। युधिष्ठिरमुवाचेदं सान्त्वपूर्वमिदं वचः।। | 18-3-10a 18-3-10b |
युधिष्ठिर महाबाहो प्रीता देवगणास्त्वया। एह्येहि पुरुषव्याघ्र कृतमेतावता विभो।। | 18-3-11a 18-3-11b |
सिद्धिः प्राप्ता महाबाहो लोकाश्चाप्यक्षयास्तव। भ्रातॄणां सुहृदां चैव गतिर्नित्या सुपूजिता।। | 18-3-12a 18-3-12b |
न च मन्युस्त्वया कार्यः शृणु चेदं वचो मम। अवश्यं नरकस्तात द्रष्टव्यः सर्वराजभिः।। | 18-3-13a 18-3-13b |
शुभानामनशुभानां च द्वौ राशी पुरुषर्षभ। यः पूर्वं सुकृतं भुङ्क्ते पश्चान्निरयमेति सः।। | 18-3-14a 18-3-14b |
पूर्वं नरकभाग्यस्तु पश्चात्स्वर्गमुपैति सः। भूयिष्ठं पापकर्मा यः स पूर्वं स्वर्गमश्नुते।। | 18-3-15a 18-3-15b |
`भूयिष्ठशुभकर्मा त्वमल्पजिह्मतयाऽच्युत।' तेन त्वमेवं गमितो मया श्रेयोर्थिना नृप।। | 18-3-16a 18-3-16b |
व्याजेन हि त्वया द्रोण उपचीर्णः सुतं प्रति। व्याजेनैव ततो राजन्दर्शितो नरकस्तव।। | 18-3-17a 18-3-17b |
यथैव त्वं तथा भीमस्तथा पार्थो यमौ तथा। द्रौपदी च तथा कृष्णा व्याजेन नरकं गताः। आगच्छ नरशार्दूल मुक्तास्ते चैव कल्मषात्।। | 18-3-18a 18-3-18b 18-3-18c |
स्वपक्ष्याश्चैव ये तुभ्यं पार्थिवा निहता रणे। सर्वे स्वर्गमनुप्राप्तास्तान्पश्य भरतर्षभ।। | 18-3-19a 18-3-19b |
कर्णश्चैव महेष्वासः सर्वशस्त्रभृतांवरः। स गतः परमां सिद्धिं यदर्थं परितप्यसे।। | 18-3-20a 18-3-20b |
तं पश्य पुरुषव्याघ्रमादित्यतनयं विभो। स्वस्थानस्थं महाबाहो जहि शोकं नरर्षभ।। | 18-3-21a 18-3-21b |
भ्रातॄन्पुत्रांस्तथा पश्य स्वपक्ष्यांश्चैव पार्थिवान्। स्वंस्वं स्थानमनुप्राप्तान्व्येतु ते मानसो ज्वरः।। | 18-3-22a 18-3-22b |
कृच्छ्रं पूर्वं चानुभूय इतःप्रभृति कौरव। विहारस्व मया सार्धं गतशोको निरामयः।। | 18-3-23a 18-3-23b |
कर्मणां तात पुण्यानां ज्ञानानां तपसां स्वयम्। दानानां च महाबाहो फलं प्राप्नुहि पार्थिवः।। | 18-3-24a 18-3-24b |
अद्य त्वां देवगन्दर्वा दिव्याश्चाप्सरसो दिवि। उपसेवन्तु कल्याणं विरजंबरभूषणाः।। | 18-3-25a 18-3-25b |
राजसूयजितां लोकानश्वमेधभिनिर्मितान्। प्राप्नुहि त्वं महाबाहो तपसश्च महाफलम्।। | 18-3-26a 18-3-26b |
उपर्युपरि राज्ञां हि तव लोकाः युधिष्टिर। हरिश्चन्द्रमसः पार्थ येषु त्वं विहरिष्यसि।। | 18-3-27a 18-3-27b |
मान्धाता यत्र राजर्षिर्यत्र राजा भगीरथः। दौष्यन्तिर्यत्र भरतस्तत्र त्वं विहरिष्यसि।। | 18-3-28a 18-3-28b |
एषा देवनदी पुण्या पार्थ त्रैलोक्यपावनी। आकाशगङ्गा राजेन्र्र तत्राप्लुत्य गमिष्यसि।। | 18-3-29a 18-3-29b |
अत्र स्नातस्य भावस्ते मानुषो विगमिष्यति। गतशोको निरायासो मुक्तवैरो भविष्यसि।। | 18-3-30a 18-3-30b |
एवं ब्रुवति देवेन्द्रे कौरवेन्द्रं युधिष्ठिरम्। धर्मो विग्रहवान्साक्षादुवाच सुतमात्मनः।। | 18-3-31a 18-3-31b |
भोभो राजन्महाप्राज्ञ प्रीतोस्मि तव पुत्रक। मद्भक्त्या सत्यवाक्यैश्च क्षमया च दमेन च।। | 18-3-32a 18-3-32b |
एषा तृतीया जिज्ञासा तव राजन्कृता मया। न शक्यसे चालयितुं स्वभावात्पार्थ हेतुतः।। | 18-3-33a 18-3-33b |
पूर्वं परीक्षितो हि त्वं प्रश्नाद्द्वैतवने मया। अरणीसहितस्यार्थे तच्च निस्तीर्णवानसि।। | 18-3-34a 18-3-34b |
सोदर्येषु विनष्टेषु द्रौपद्या तत्र भारत। श्वरूपधारिणा तत्र पुनस्त्वं मे परीक्षितः।। | 18-3-35a 18-3-35b |
इदं तृतीयं भ्रातॄणामर्थे यतस्थातुमिच्छसि। विशुद्धोसि महाभाग सुखी विगतकल्मषः।। | 18-3-36a 18-3-36b |
न च ते भ्रातरः पार्थ नरकार्हा विशांपतै। मायैषा देवराजेन महेन्द्रेणि प्रयोजिता।। | 18-3-37a 18-3-37b |
अवश्यं नरकास्तात द्रष्टव्याः सर्वराजभिः। ततस्त्वया प्राप्तमिदं मुहूर्तं दुःखमुत्तमम्।। | 18-3-38a 18-3-38b |
न सव्यसाची भीमो वा यमौ वा पुरुषर्षभौ। कर्णो वा सत्यवाक् शूरो नरकार्हाश्चिरं नृप।। | 18-3-39a 18-3-39b |
न कृष्णा राजपुत्री च नरकार्हा कथञ्चन। एह्येहि भरतश्रेष्ठ पश्य चेमांस्त्रिलोकगान्।। | 18-3-40a 18-3-40b |
वैशम्पायन उवाच। | 18-3-41x |
एवमुक्तः स राजर्षिस्तव पूर्वपितामहः। जगाम सह धर्मेणि सवैश्च त्रिदिवालयैः।। | 18-3-41a 18-3-41b |
गङ्गां देवनदीं पुण्यां पावनीमृषिसंस्तुताम्। अवगाह्य ततो राजा तनुं तत्याज मानुषीम्।। | 18-3-42a 18-3-42b |
ततो विव्यवपुर्भूत्वा धर्मराजो युधिष्ठिरः। निर्वैरो गतसंतापो जले तस्मिन्समाप्लुतः।। | 18-3-43a 18-3-43b |
ततो ययौ वृतो देवैः कुरुराजो युधिष्ठिरः। धर्मेण सहितो धीमांस्तूयमानो महर्षिभिः।। | 18-3-44a 18-3-44b |
यत्र ते पुरुषव्याघ्राः शूरा विगतमन्यवः। पाण्डवा धार्तराष्ट्राश्च स्वानि स्थानानि भेजिरे।। | 18-3-45a 18-3-45b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्वर्गारोहणपर्वणि तृतीयोऽध्यायः।। 3 ।। |
18-3-17 हतः कुञ्जर इति अस्वत्थामवधे द्रोण उपचीर्णो वञ्चितः गजवाचीशब्दो मनुष्यपरत्वेन ज्ञापित इत्युपचारच्छलेनेत्यर्थः।। 18-3-19 तुभ्यं तव।। 18-3-33 जिज्ञासा परीक्षा।। 18-3-35 स्वर्गाधिरोहणे द्रौपद्या सह सोदर्येषु विनष्टेयु सत्सु। श्वरूपदारिणा शुनकरूपिणा।। 18-3-44 यत्र ते पाण्डवास्तत्र देवैः सह ययाविति द्वयो सम्बन्धः।।
स्वर्गारोहणपर्व-002 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | स्वर्गारोहणपर्व-004 |