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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५४३

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५२६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते केन्द्र सपाते खुचरस्तु योज्यः । अतश्त्रलात् पातयुताज्ज्ञ भूग्वोः सुधोभिराचैः शर सिद्धिरुक्ता," इति भास्करोक्तिः । अथ बुध शुक्र पातः=पा, अत्र मध्यम शीघ्र केन्द्र योजनेन वास्तवपातः= पा+मशीकेमध्यग्रहोनमुच्च मध्यमशीघ्रतेन्द्रम् । मध्यग्रहः=विपरीतमन्दफल- संस्कृतमन्दस्पष्टग्रहः। अत्र यदि मन्दफलं धनं कल्प्येत, मध्यग्रह=मन्दस्यः मंफल अतो मध्यशीघ्रकेन्द्रस्= शीउ-मंस्य+मंफल, ततो बुधशुक्रयोर्वास्तव-- पातः= -पाः+मशीके =–प+शीउ-मंस्य+मंफल ततः सपातमन्दस्पष्टग्रहः = शरसाधनाथं भुजांशः=पातमंस्यः =-पात+शीउ-मंस्य+मंफल+मंस्य ==पात+शीउ+मंफलशीउ-(पात-मंफल) एतेन बुधशुक्रयोविक्षेप- केन्द्रमुपपद्यते, अतो वासनायां भास्करः "किंच मन्दस्फुटोनं शीघ्रोच्चं प्रतिमण्डले केन्द्रम् । तत् पते क्षेप्तुं युज्यते । एवं कृते सति विक्षेपकेन्द्र मन्दफलेनान्तरितं स्यात्, ग्रहच्छायाधिकारे सितज्ञशतौ स्फुटौ स्तश्चल केन्द्रयुक्तावित्यत्र मन्दस्फुटनं शीघ्रोज्वं शीघ्रकेन्द्र पाते क्षिप्तम् । अतस्तत्र मन्द फलान्तरमङ्गीकृतमित्यर्थः। इतरकेन्द्रस्यानुपपतेः। अतो मन्दफलं पतेऽव्यस्तं देयम् यतोऽनुपातसिद्ध चलकेन्द्र मध्यग्रहोनशीघ्रोच्चतुल्यं भवति इति “पातेऽव्यस्तं देयम्" इति भास्करोक्त- माचार्योक्तसदृशमेव, सूर्यसिद्धान्तकारमते पाते व्यस्तं देयमिति सिध्यति पातस्य चद्विशोधनादिति । अब स्फुट पातनयन को कहते हैं हि. भा.-बुध और शुक के गशितागत पात में मन्द फल को यथागत धन या झण देना चाहिये, और शीघ्रफल को विपरीत देना चाहिये। तब दोनों (बुध और शु) ने स्फुट पात होते हैं । दोष ग्रहों (भौम, गुरु, और शनैक्चर) के पातों में केवल शीघ्रफल को विपरीत देना चाहिये तब उन सबों के स्फुट पात होते हैं। उस मध्यग्रह योग रहित पात से शर सधन करना चाहिये अर्थात् स्फुटपाव में स्फुट ग्रह को जोड़ कर जो हो उससे शर साधन करना ; बुध और शुक्र के चार साधन के लिये उन दोनों के शीघ्रोच्चों में ययागत स्फुट शीघ्र फल को संस्कार कर शीघ्रोच्च को स्पष्ट करना चाहिये, तब स्व-स्व । स्फुट पात सहित स्फुट शीघ्रोच्चों से शरानयन करना चाहिये इति ॥८॥ उपपति अहगोल में फ्रान्तिवृत और विमण्डल के सम्पात बिन्दु पात हैं, मेवादि से पात्र विलोम चलता है तथा मन्दस्पष्टग्रह अनुलोम चलता है इसलिये दोनों का प्रन्तर दोनों के योग करने से पात स्थान से मन्द स्पष्ट ग्रहपर्यन्त होता हैं, विपरीत शीघ्रफल संस्कृत कूटश्चद् मन्दपद ग्रह होते हैं । यहाँ पात में विपरीत थीव्र बल का संस्कार कर उसचे