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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४०३

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३८६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तेः पूर्णान्तकालिकचन्द्रविमण्डलीयमुजः –मन्तिवृत्तीयभुजांश और शर इनसे उत्पन्न वापीयजात्य त्रिभुज को सरलजास्य त्रिभुज मानकर स्थिरभूमा पर स्थिरचन्द्र वश से एक कल्लिस विमण्डल नाम के चन्द्रमार्ग की रचना मैंने वटेश्वरसिद्धान्त में दिखलायी है, उसका रचना प्रकार उसी से समझना चाहिये। उस (कल्पित विमण्डल) के रचना क्रम को देखने से यह भी सिद्ध होता है कि चलित भूभा और चलित चन्द्र का अन्तर स्थिरभूभा और कल्पित चन्द्र के अन्तर के बराबर होता है, स्थिरभूभा से कल्पित विमण्डल के ऊपर लम्ब- सियम, म बिन्दु में ही स्थिरभूभा और म बिन्दुस्थ कल्पित चन्द्र का अन्तर किसी भी चलित भूभा और चलित चन्द्र के अन्तर के बराबरं होगा परन्तु यह परमाल्पान्तर है इसलिये इसी (म) बिन्दु में मध्यग्रहण होना उचित है, लेकिन यह (म) बिन्दु पूर्णान्त से अन्यत्र है। इसलिये पूर्णान्त में मध्यग्रहण ‘मध्यग्रहः पर्वविरामकाले’ इससे भास्कराचार्येश्रीपति तथा पूर्णान्तकाल में मध्यग्रहण का होना ठीक नहीं है, स्थिरभूभा केन्द्र को आचायक्ति केन्द्र मानकर मतैक्यार्घ व्यासार्ध से जो वृत्त होता है । वह पूर्णान्ताभिमुख कपित विमण्डल में जहाँ लगता है वहाँ स्पर्श तथा विरुद्ध दिशा में कहित विमण्डल में जहाँ लगता है वहाँ मोक्ष होता है, वटेवरसिद्धान्त ‘ में ‘भध्यग्रहण और पूर्णन्त काल का अन्तरानयन भी’ में (१) ने दिखलाया है वह उसी से समझना चाहिए, शेष सब बातें स्पष्ट हैं इति ॥२५॥ इदानीमक्षज्ञवलनसाधनमाह प्राक्पश्चान्नतविषुवज्ज्ययोर्वेषात् त्रिज्ययाप्तचायं यत् । उत्तरयाम्ये पूर्वा विषुववृत्तात् त्रिो ग्राह्या ॥१६॥ सु. म-प्राक् प्राक्क्रपाले पश्चात् पश्चिमकपाले यो नतः सममण्डलीय नतभागारतेषां या ज्या। या च विषुवज्याऽक्षज्या तयोर्वधात् त्रिज्यया यदाप्तं तस्य चापांशैस्त्रिभे प्रहाद्राशित्रयान्तरे उत्तरयाम्ये प्राक्पश्चान्नतक्रमेण ग्राह्या ग्राह्यवृत्तीया विषुवद्वृत्तस्य पूर्वा f भवति सममण्डलादित्यग्रेण सहान्वयः। अत्रोपपत्तिः । तेषां क्रमज्या पल शिञ्जिनीभक्ता द्यसौख्य’ इत्यादिभास्कर- विधिना स्फुटा। आचार्येण बृज्यास्थाने त्रिज्या रडूला गृहीता। नतशब्देन यज्ञ- होरात्रे नत कालो गृह्यते तदा वलनवसनयाऽत्यन्तं स्थूलमचार्योक्तमक्षवतम् भवेदिति चापीयत्रिकोणमित्या वलनानयनेन स्फुटम् ॥१६॥ (१) बटेश्वरसिद्धान्त के टीकाकार (पच्छित मुकुन्दमि ज्यौतिषविभाव (वयुनंमेट संस्कृत कालेव मुफ्फरपुर)शाम संकेत-प्राण देपुरा, षो. प्रौ. (वनपह्) अ-दरबा, बिहार ।