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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३२९

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३१२ अत्रोपपत्तिः क्षितिजाहोरात्रवृतयो: सम्पातोपरिगतं ध्रुवप्रोतवृत्तमुत्तरगोले दक्षिण गोले च क्रमेण नाडीवृत्त पूर्वस्वस्तिकाच्चरान्तरेऽध ऊध्र्वे लगति ताभ्यां पूर्वापर सूत्रस्य समानान्तररेखे कार्यं तदुपरि ग्रहोपरिगतश्रुवप्रोतवृत्तनाडीवृत्तयोः सम्पाता लम्बरे गोलयोरिष्टान्ये पूर्वापरमूत्र-समानान्तररेखयोरन्तरं चरज्याऽस्ति, मध्याह्नकाले याम्योत्तरवृत्ते रवेः स्थितत्वात्तदुपरिगतश्रुवप्रोतवृत्तनाडीवृत्तयोः सम्पातो नि रक्षखस्वस्तिकमेव तस्मात् पूर्वापरसूत्रसमानन्तररेखोपरिलम्बरेखा निरक्षध्वधरस् सूत्रमेव तेन भूकेन्द्रान्निरक्ष खस्वस्तिकं यावत् त्रिज्यायामुत्तरगोले पूर्वापरसूत्र-समानान्तररेखयोरन्तर्गतं निरक्षोघरसूत्रखण्डं (चरज्या) योज्यं तदा निरक्षखस्वस्तिका समानान्तर रेख यावल्लम्बरूपाऽन्त्या भवेत् । दक्षिण गोले तु त्रिज्यायां चरध्यायाः शोधनेन तत्प्रमाणं भवति । तथा चाहोरात्रवृत्तगर्भ केन्द्राद्रव यावद् युज्यायां निरक्षोदयास्तस्वोदयास्तसूत्रयोरन्तर्गतं कुज्यमानं गोलयो युतं विहीनं तदा दिनार्धे रवितः स्वोदयास्तसूत्रपर्यन्तं लम्बरूपा हृतिर्भवति । सिद्धान्तशेखरे "स्वाहोरात्रदलं युतोनमवनीमौव्यं दिनाद्दन्त्यका व्यासार्ध चरजीवया भवति स चान्त्याऽर्कगोलक्रमात्ऽनेन श्रीपतिना, भास्करेण ‘क्षितिज्ययैवं घुगुणश्च सा हृतिश्चरेज्ययैवं त्रिगुणऽपि सान्त्यका ऽनेनाऽऽचार्योक्तमेव कथ्यत इति ॥३४॥ अब इति और भन्या को कहते हैं हि. भा.-उत्तरगोल में चुज्या में कुज्या । को जोड़ने से भर दक्षिणगोल में युष्मा में कुज्या को घटाने से हृत (मध्यहृति) होती है । तथा उत्तरगोल में त्रिज्या में चरज्या को जोड़ने से और दक्षिणगोल में त्रिज्या में चारज्या घटाने से अन्या (मध्याह्नकाल में) होती है । । उपपत्ति क्षितिजाहोरात्रवृत के सम्पातापरिगत ध्र.वश्रोतवृत्त उत्तरगोल में और दक्षिण- गोल में क्रम से नाडीवृत्त में पूर्वेस्वस्तिक से चरान्तर पर नीचे और ऊपर लगता है, उन दोनों बिन्दुओं से पूर्वापर सूत्र की समानान्तर रेखाओं के ऊपर ग्रहोपरिगतत्र वस्रोतृवृत्त और नावृत्त के सम्पात से सम्बरेशा इष्टान्त्या है, मध्याह्नकाल में रवियाम्योत्तरवृत्त में होता है इसलिये अहो (वि) परिंगत ध्रुवप्रोतवृत्त (याम्योत्तरवृत्त) और नाडीवृत्त के सम्पात मिरक्षास्वस्तिक से पूर्वापरसूत्र के छमानान्तररेखा के ऊपर लम्बरेखा निरको बयर रेखा ही है। शुद्र से निरक्षस्वस्तिक पर्यन्त त्रिज्या में पूर्वापर तत्र समानान्तर रेखयों के अष्यगत निरक्षोघ्षरसूत्रखण्ड (वरज्या) को उत्तरगोल में घोड़ने से शौर वसिष्ठगोक में पटाने से निरक्षखगस्तिक से समानान्तररेखा पर्यन्त सम्बपरेखा अन्या