२८० ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते वि. भ–क्रियतुलादौ (मेषादौ तुलादौ) सूर्यं इष्टदनाध नताशान क्रान्त्यशानां ( मेषादौ ) सयै योगोन्तरमक्षांश भवन्ति । अजादौ छयायां (मध्याह्नच्छायायां) याम्यायां (दक्षिणायां ) सत्यां नतांशक्रान्त्यंशान्तरमेवाक्षांश भवन्तीति ।।१३। उत्तरगोले मध्याह्नकाले खस्वस्तिकनिरक्षखस्वस्तिकयोरन्तरे रवौ, रवितो निरक्षस्खस्वस्तिकं यावन्मध्यक्रान्तिः । रवितः खस्वस्तिकं यावन्मध्यन तांशाः, एतयोर्योगेन खस्वस्तिकान्निरक्ष खस्वस्तिकं यावदक्षांशा भवन्ति, दक्षिण गोले निरक्ष खस्वस्तिकाद्दक्षिणे सूर्यं नतांशे क्रान्त्यंशशोधनेऽक्षांशा भवन्ति । उत्तर गोले खस्वस्तिकादुत्तरे रवौ-रवितो निरक्षखस्वस्तिकं यावत्क्रान्त्यंशे नतांच- शोधनेनाक्षांशा भवन्ति, सिद्धान्तशेखरे ‘उदगिनापमभागसमन्विता नतलवा इतरत्र विशेषिताः। स्वविषये हि भवन्ति पलांशकाःइत्यनेन श्री पतिना नतां शापुमांशान्तरं तुन्यदिक्त्वे युतिभिन्नदिक्त्वे पलांशा भवेयुरित्यनेन भास्करा चार्येणाप्याचार्योक्तमेव कथ्यत इति ॥१३ अब दिनार्धकाल में नताँश और नात्यश के ज्ञान से अक्षांश ज्ञान को कहते हैं । हि. भा–मेषादि में और तुलादि में सूर्य के रहने से अर्थात् उत्तरगोल में और दक्षिणगोल में इष्टदिन के दिनार्धकाल में नतांश और क्रायंश का योग और अंतर अक्षांश होता है, मेषादि में सूर्य के रहने से अर्थात् उत्तरगोल में मध्यान्हकालिक छाय दक्षिण रहने से नतांश और ऋात्यंश का अन्तर ही अक्षांश होता है इति ।१३।। उत्तर गोल में मध्यान्ह में खस्वस्तिक और निरक्षखस्वस्तिक के मध्य में याम्योत्तर बृत्त में रवि के रहने से रवि से निरक्षखस्वस्तिक पर्यन्त रवि की मध्यक्रान्ति है, तया रवि से खस्वस्तिक पर्यन्त रवि के मध्यनतांश है, इन दोनों का योग करने से खस्वस्तिक से निरक्ष सस्वस्तिक पर्यन्त अक्षांचा होता है, दक्षिण गोल में निरक्षसस्वस्तिक से दक्षिण में सूर्य के रहने से नतांस में से क्रान्त्यंश को घटाने से अक्षांश होता है, उत्तरगोल में खस्वस्तिक से उत्तर में रवि के रहने से रवि से निरक्ष सस्वस्तिक पर्यंत क्रान्त्यंश में से नतांश को घटाने से अक्षांक होता है, सिद्धांतशेखर में ‘उदगिनापमभागसमन्विता नतलवा इतरत्र विशेषिताः । स्वबिबवे हि भवन्ति पलांशका' इससे औपति, तथा सिद्धान्त शिरोमणिमें नतांशापमन्तरं तुक्स्चेि नुतिभिन्नदिक्त्वे पलांश्च भवेयुः' इससे भास्कराचार्य भी आचार्योंक्त ही को कहते हैं इति ॥१३॥
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