२७८ ब्राह्म स्फुटसिद्धान्ते अब पुनः प्रकारान्तर से लम्बज्या और अक्षज्या को कहते हैं । । हि. भा. –नवत्यंश में से लम्बाँश को घटाने से शेष की ज्या प्रक्षज्या होती है, नवयंश में से अक्षांश को घटाने में रोष की ज्या लम्बज्या होती है, वा अक्षज्या और लम्बज्या को क्रम से द्वादश और पलभा से गुणाकर पलभा और द्वादश से भाग देने से लम्बज्या और अक्षज्या होती है इति ।।११।। ज्या (९०–अक्षांश)= लम्बज्या, ज्या (९०–लम्बांश)=अक्षज्या, वा अक्षज्या X १२ पभा x लंज्या =अक्षज्या इससे आचायाक्त उपपन्न फूलंज्या,
हुआ ॥।११।। इदानीं पुनः प्रकारान्तरेणाह F वि. भा.-त्रिज्याकृतेः (त्रिज्यावर्गात्) लम्बाक्षज्यावगं प्रोह्य पदं वाऽन्या (त्रिज्यावर्गाल्लम्बज्यावगं विशोध्यमूलमक्षज्या तथा त्रिज्यावर्गादक्षज्यावर्ग विशोध्य मूलं ग्राह्य वाऽन्या लम्बज्या) भवेत् । एवमन्यत्र सर्वदोन्नतनतजीवांश- नयनं कार्यमौ नतज्या वर्गानात् त्रिज्यावर्गान्मूलमुन्नतज्या, उन्नतज्यावगनात् त्रिज्यावर्गान्मूलं नतज्या भवेत् । एतयोश्चापे उन्नतांशा नतांशाश्च भव- न्तीति ॥१२॥ तिः । त्रि-लंज्या' =अज्या, त्रेि--अज्या' =लंज्या, नतांशज्या= दृग्ज्या, उन्नतांशज्या= शंकु, / त्रि- शंकु = इरज्या, त्रि-दृग्ज्या ' = शंकु, इति ।१। अब पुनः प्रकारान्तर से लम्बज्या भौर अक्षज्या को कहते हैं । हैि. मा-वा त्रिज्यावर्ग में से लम्बज्यावर्ग को घटाने से शेष का मूल अक्षज्या होती है, त्रिज्यावर्ग में से अक्षज्यावर्ग को घटांने से शेष का मूल लम्बज्या होती है, इसी तरह उन्नतांक्षा और नतांत्रज्या का आनयन करना अर्जीव नतांत्रज्यावर्ग को त्रिज्यावर्गों में से धष्टाने से दोष का मूल उन्नतांशष्या (.) होती है, तथा उन्नतांशज्याबरों को त्रिज्यावर्म में वे बटाले से क्षेत्र का खून नतांशज्या (ज्या) होती है, इन दोनों का बाय उन्नतांस और गाँव होता है। इति ॥१२॥