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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/२६३

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२४६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते पञ्चदशनाड्यो दिनर्धप्रमाण भवन् । दक्षिणगोले तु स्वक्षितिजादुन्मण्डलस्याधः स्थितत्वाच्चरघटीहीनाः पञ्चदशघट्यो दिनार्धप्रमाणम् । उभयगोलीय दिनार्धमानं त्रितः शोध्यं दभयगदायराश्यधमान भवेत् । द्विगुणीकरणेन दिनरात्रिमाने भवनः सिद्धान्तशिरोमणौ चरघटीसहिता रहिता इत्यादिना, भास्करेणाप्येवमेव कथ्यत इति ॥ ६० ॥ अव दिन मान और रात्रिमान को कहते हैं। हि. भा. –उत्तर गोल में पन्द्रह १५ घटी में चरार्ध घटी को जोड़ने से और घटाने से दिनाघं घटी और राज्यधु घटी होती है, द्विगुणित करने से दिनमान और रात्रिमान होता है । दक्षिण गोल में पन्द्रह १५ घटी में से चराधं घटी को घटाते से और जोड़ने से दिनार्ध और राश्यर्थ मान होता है, द्विगुणित करने से दिन मान और रात्रिमान होता है. इति ॥६०॥ उन्मण्डल और याम्योत्तर वृत्त के अन्तर में पन्द्रह घटी है, और स्वक्षितिज तथा उन्मण्डल के मध्य में चर घटी है, उत्तरगोल में स्वक्षितिज से उन्मण्डल ऊपर है इसलिये पन्द्रह घटी में चरघटी को जोड़ने से दिनार्धमान होता है, दक्षिण गोल में स्वक्षितिज से उन्म षडल नीचा है इसलिये पन्द्रह घटी में से चरघटी को घटाने से दिनाची मान होता है, दोनों गोलों के दिनार्धमान को तीस में से घटाने से दोनों गोलों (उत्तर गोल ओर दक्षिण गोल) का राज्याची मान होता है, द्विगुणित करने से दिनमान और रात्रिमान होता है, सिद्धान्तशिरो मणि में "चरघटी सहिता रहिता इत्यादि सेॐ भास्कराचार्य भी इस तरह कहते हैं इति u६० इदानीं ग्रहाणां नक्षत्रानयनमाह भान्यश्विन्यादीनि ग्रहलिप्ताः खखवसूद्धृता लब्धस् । भुक्तिहृते गतगभ्ये दिवसाः षष्ट्या गुणे घटिकाः ॥ ६१ ॥ वा.भा-इदानीं नक्षत्रानयनार्थं सर्वग्रहाणामार्यामाह। इष्टस्फुटग्रहलिप्ताः खखवसुर्भािवभजेत् फलभुक्तानि नक्षत्राण्यश्विन्यादीनि भवन्ति, शेषलिप्तागतसंज्ञाः ताश्च खखवसुभ्यो विशोध्य गम्यसंज्ञा भवन्ति । ततो गत गम्ये द्वे अपि तस्यैव प्रहस्य मुक्त्या विभजेत् । फलं दिवसाः शेषात् षष्टिगुणात् घटिका विघटिकाश्च एवं गतात् प्राक् कालं गम्यादिष्टाभिहृतचन्द्रभागेन व्यवहारेण स्फुटचन्द्रादुक्त बन्नक्षत्राखंतावानीय चरदलं विनाप्रमाणादिभिर्वहार: इष्टावधे कार्येति प्रसिद्धत्वान्नोदाहृत इति अत्र वासना स्फुट ग्रहे मेषादिराशिगणना मेषादय अश्विन्यादिभिर्नवभिर्नवभिर्नक्षत्रपादैर्नक्षत्रपादाश्चाष्टादश - शत-लिप्ता-प्रमाणस्य