सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/६३५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

ब्रक्षसिडिग्याख्या Page. 269 Chवंnd. 5-4-1. असौ वाव लोकः ... अस्तिर्भवन्तीपरः 198 Mahi-Bhag. 2-8-1. अस्थूलम् Brh. 3-8-8 . 294, 263 60 Chand. 8-3-2. अहरहरिमाः प्रजाः ... . आग्नेयोऽष्टाकपालः --. आत्मज्योतिः सम्राट् 288 Tait. Sad. 7-5-21-1. 15 C£ B¢h 4-8-2. आत्मन आकाशः 255 Tait. 2-1-1. 294 Brh. 2-4-5. आत्मनस्तु कामाय आत्मनि विज्ञाते 244 do, 4-5-6. अमन्येवात्मन • 262 ita 2-55. आरममिथुनः 257 Chand. 7-5-2. 295 Apa. Adhy. 2. आत्मलाभप्त परम् आत्मेत्येवोपासीत 237. 238. Brh. 1-4-7. 294 22 Chवंnd. 7-25-. आत्मैवेदम आदित्यो यूपः आनन्दं ब्रह्म 120 Tait Brईं. 2-1-5 15 Brh. 3-9-28. 38 do. 4-4-6, आप्तकाम आत्मकामः आपो वै शान्तः 119 Tait. Sab5-4-4. 258 Vispu, 2-8-96 294 Brh. 2.4.6. आभूतसर्वम्_ इदं सर्वं यदयमात्मा ... इमं मानवमावर्त ... ... इववाशब्दावुपमानार्थी • 251, 252 hand. 4-15-5. 57 3 4 = 8 इह वतन्त 252 C. Chand. 4-15-6. उच्चै ऋचा क्रियते 124 Ap sh, Sh. 24-1-. 81 उपरि हि देवेभ्यः । उपांशुयाजमन्तर • . ... 254, 294 Tait. Shri 2-6-6. ऋणानि त्रीण्यपाकृत्य 71, 99 Manए, 6-8-5.