पृष्टेन चानुपृष्टास्ते मुनयो धर्मकाक्षिणः । देशे पुण्यमभीप्सन्तो विभुना तद्धितैषिणा ।१८१
सुनाभं दिव्यरूपाख्यं सत्याङ्ग शुभचिक्रमम् । अनौपम्यमिदं चक्रे वर्तमानमतन्द्रिताः ॥१८२
पृष्ठतो यात नियतास्ततः प्राप्स्यथ यद्धितम्। गच्छतो धर्मचक्रस्य यत्र नेमिर्विशीर्यते ।१८३
पुण्यः स देशो मन्तव्य इत्युवाच तदा प्रभुः । उक्त्वा वैवमृषीन्ब्रह्मा स्टडश्यत्वमगात्पुनः ।१८४
गङ्गागर्भसमाहारं नैमिषेयत्वमेव च । ईजिरे चैव सत्रेण मुनयो नैमिषे तदा ॥१८५
मृते शरद्धति तथा तस्य चोत्थापनं कृतम् । ऋषयो नैमिषेयास्तु श्रद्धया परया पुनः १८६
निःसीशां गामिमां कृत्स्नां कृत्वा राजानमाहरत् । यथाविधि यथाशास्त्रं तमातिथ्यैरपूजयन् ॥
पीतं चैव कृतातिथ्यं राजानं विधिवत । अन्तर्धानगतः क्रूरः स्वर्भानुरसुरोऽहरत् ॥१६
अनुसन्धु हुतं चापि नृपमैडं यथा पुरा । गन्धर्वसहितं डच फलापग्रामवासिनम् ॥१८€
संनिपातः पुनस्तस्य यथा यज्ञे महर्षिभिः । दृष्णू हिरण्मयं सर्वे यज्ञे बस्तु महात्मनाम् ।।१६०
तदा वै नैमिषेयाणां सत्रे द्वादशवार्षिके । यथा विवदमानस्तु ऐडः संस्थापिंतस्तु तैः ।१८१
जनयित्वा त्वरण्यान्त पेडपुत्रं यथायुपम्। समापयित्वा तत्सत्रभयुपं पर्युपासते ॥१८२
एतत्सर्वं यथावृत्तं व्याख्यातं द्विजसत्तमाः । ऋषीणां परमं चात्र लोकतत्त्वमनुत्तमम् ।।१८३
ब्रह्मणा यत्पुरा प्रोक्तं पुराणं शानमुत्तमम् । अवतारश्च रुद्रस्य द्विजानुग्रहकारणात् ॥१८४
लालसा से पुष्पप्रदेश पाने के इच्छुक मुनियों की पूछताछ करने पर उनकी हित-कामना से सुन्दर नभिवाला दिव्य रूप विक्रम अनुत्तम वर्तमान चक्र बताकर कहा कि आलस्य दृढता पीछे चल नामक शुभ को छोड़ पूर्वक जाओ तव कल्याण प्राप्त होगा ।१८०-१८२। जाते जाते जहाँ इस धर्मचक्र नेमी शोर्ण हो जाय उसी को वृहत् पुण्य देश ऐसा फिर ब्रह्मा अदृश्य हो गये । गङ्गा के गर्भ तथा नैमिषेय का वर्णन समझना और वतलकर कर बताया है कि मुनियो ने नैमिषारण्य में यज्ञ किग्रा । शरद्वान् के मरने पर नैमिषारण्य के ऋषियों ने बड़ी श्रद्धा से उसका उत्थापन किया ।१८३-१८६। उसे इस सम्पूर्ण नि.सीम पृथ्वी का राजा बना कर ले आये और विधि पूर्वक ( शास्त्र को मर्यादा से उनका अतिथि-सत्कार किया ।१८७। जव विघि पूर्वक आतिथ्य से राजा तो राक्षस (राहुहर लिया प्रसन्न हुआ उसको छिपकर तैर स्वर्भानु ) ने । प्राचीन काल में जैसे ऋषिगण हरे जाने पर भी गन्धर्वो के साथ कलाप ग्राम में रहने वाले राजा ऐड के पीछे गये और यज्ञ मे ऋषियों के साथ उनका मिलना आदि वणित है । महात्मा मुनियों के यज्ञ मे सब वस्तु बारह ‘हिरण्मयीदेख कर उस वर्ष में होने वाले नैमिषारण्य के ऋषियों के उस कंसे विवाद हुआ और ऐड को उन्होंने कंसे स्थापित किया— सत्र मे सब वर्णित है १८८१९१ वन में ऐड के आयुष को समाप्त आयुष पुत्र को उत्पन्न कराकर उस यज्ञ करके की उपासना की । हे ऋषिश्रेष्ठो ! यह सब जैसे जैसे हुआ, वताया गया है एवं यहां ऋषियों का परम, सर्वोत्तम लोकतत्व भी वणित है। पूर्वकाल मे जो उत्तम ज्ञान पुराणब्रह्म ने कहा था और ढिलों पर अनुग्रह करके जो रुद्र