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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१२९

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१४] धम्मपदं [ १५१ अनुवाद--( यदि वह ) , मत्सरी और शठ है; वौ, ब होने भान्नसेसुन्दर रूप होनेरे, आडमी अञ्चरूप नहीं होता है। लिडके यह जमूळसे बिलकुल उच्छिा हो गये हैं, जो विगतदोष, मेधावी है, वही सहप कहा जाता है । जतवन इत्थक ( भिक्षु ) २१ ४–न मुण्डकेन समणो अब्बतो अलिकं भणं । इच्छलाभसमापन समणो किं भविस्सति ॥६॥ (न मुंडकेन भमणो ऽभुतो:ीकं भणन् । इच्छालाभसमापः श्रमणः किं भविष्यति ॥९) २६५–यो च समेति पापानि अणं शूलानि सर्वसो। समितता. हि पापानं समयोति पञ्चच्वति ॥१०॥ ( यश्च शमयति पापानि अणूनि स्थूळानि सर्वशः। शमितत्वाद्धि पापानां भ्रमण इत्युच्यते ॥१०) || अनुवाद—जो व्रतरहित, मिथ्याभाषी है, वह सुण्ठित होने मात्र से असण नहीं होता। इछा काभसे भरा (: )या अमूण होगा ? जो छोटे यद्वै पापको सर्वथा शमन करनेवाला है, पापको शमित होनेकै कारण वह ससण (=श्रमण ) कहा जाता है। कई शाखण २६६-न तेन भिक्खू []होति यावता भिक्खते परे । विसं घर्मं समादाय भिक्खू होति न तानता ॥११॥