सम्भाषणम्:ऋग्वेदः सूक्तं ४.२
विषयः योज्यताम्दिखावट
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रास
[सम्पाद्यताम्]प्रथम सुने भागवत, भक्त मुख भगवत वाणी । [1] द्वितीय अराधे भक्ति, व्यास नव भांति बखानी ॥ [2] तृतीय करे गुरु समुझी, दक्ष सर्वज्ञ रसीलो । [3] चौथे होई विरक्त, बसे वनराज जसि ॥ [4] पांचे भूले देह सुध, छठी भावना रास की । [5] सातै पावे रीति रस श्री स्वामी हरिदास की ॥ [6] - श्री भगवत रसिक, भगवत रसिक की वाणी, अनन्यनिश्चयात्म ग्रन्थ - उत्तरार्ध (36) Puranastudy (सम्भाषणम्) ०४:३२, २१ जून् २०२४ (UTC)