महाभारतम्-04-विराटपर्व-059
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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द्रोणार्जुनयोर्युद्धवर्णनम् ।। 1 ।। अर्जुनबाणाहतिविषपणे द्रोणे अश्वत्थाम्ना तद्रक्षणायार्जुनप्रत्यभियानम् ।। 2 ।। अत्रान्तरेऽर्जुनदत्तावकाशेन द्रोणेन रणादपयानम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-59-1x |
जितं वैकर्तनं दृष्ट्वा पार्थो वैराटिमब्रवीत्। | 4-59-1a 4-59-1b |
यावच्छङ्खमुपाध्यास्ये द्विषतां रोमहर्षणम्। | 4-59-2a 4-59-2b |
याहि शीघ्रं यतो द्रोणो ममाचार्यो रणे स्थितः ।। | 4-59-3a 4-59-3b |
बलं सत्वं च तेजश्च लाघवं च व्यवर्धत ।। | 4-59-4a 4-59-4b |
उत्तर उवाच। | 4-59-5x |
अस्त्राणां तव दिव्यानां शरौघान्क्षिपतः शितान्। | 4-59-5a 4-59-5b |
द्वैधीभूतं मनो मह्यं भयाद्भरतसत्तम । | 4-59-6a 4-59-6b |
तव बाहुबलं चैव धनुः कर्षयतो बहु। | 4-59-7a 4-59-7b |
वैशंपायन उवाच। | 4-59-8x |
तमुत्तरश्चित्रमवेक्ष्य गाण्डिवं शरांश्च मुक्तान्सहसा किरीटिना । | 4-59-8a 4-59-8b |
तमब्रवीत्किंचिदिव प्रहस्य गाण्डीवधन्वा द्विषतां निहन्ता । | 4-59-9a 4-59-9b |
वैशंपायन उवाच। | 4-59-10x |
आश्वासितस्तेन धनंजयेन वैराटिरश्वान्प्रतुतोदय शीघ्रम्। | 4-59-10a 4-59-10b |
उत्तरं चैव बीभत्सुरब्रवीत्पुनरर्जुनः । | 4-59-11a 4-59-11b |
राजपुत्रोऽसि ते भद्रं कुले महति मात्स्यके। | 4-59-12a 4-59-12b |
धृतिं कृत्वा सुविपुलां राजपुत्र रथं मम। | 4-59-13a 4-59-13b |
उक्त्वा तमेवं बीभत्सुरर्जुनः पुनरब्रवीत्। | 4-59-14a 4-59-14b |
यत्रैषा काञ्चनी वेदिर्दृश्यतेऽग्निशिखोपमा । | 4-59-15a 4-59-15b |
तत्र मां वह भद्रं ते द्रोणं योत्स्यामि सत्तमम्। | 4-59-16a 4-59-16b |
अमी शोणाः प्रकाशन्ते तुरगाः साधुवाहिनः । | 4-59-17a 4-59-17b |
यतो रथवरे शूरः सर्वशस्त्रभृतांवरः। | 4-59-18a 4-59-18b |
आदित्य इव तेजस्वी बलवीर्यसमन्वितः। | 4-59-19a 4-59-19b 4-59-19c |
चत्वारो निखिला वेदाः साङ्गोपाङ्गाः सलक्षणाः । | 4-59-20a 4-59-20b |
पुराणमितिहासश्च अर्थविद्या च मानवम् । | 4-59-21a 4-59-21b |
क्षमा दमश्च सत्यं च तेजो मार्दवमार्जवम् । | 4-59-22a 4-59-22b |
यस्याहमिष्टः सततं मम चेष्टः सदा च सः। | 4-59-23a 4-59-23b |
आचार्यं प्रापयेदानीं ममोत्तर महारथम्। | 4-59-24a 4-59-24b |
उत्तरस्त्वेवमुक्तोऽश्वांश्चोदयामास तं प्रति । | 4-59-25a 4-59-25b |
तमापतन्तं वेगेन पाण्डवं सरथं रणे। | 4-59-26a 4-59-26b |
स तु रुक्मरथं दृष्ट्वा कौन्तेयः समभिद्रुतम्। | 4-59-27a 4-59-27b |
उषिताः स्मो वने वासं प्रतिकर्मचिकीर्षवः । | 4-59-28a 4-59-28b |
अहं तु ताडितः पूर्वं प्रहरेयं तवानघ । | 4-59-29a 4-59-29b |
ततः प्राध्मापयच्छङ्खं भेरीपटहवादितम् । | 4-59-30a 4-59-30b |
वैशंपायन उवाच। | 4-59-31x |
ततस्तु प्राहिणोद्द्रोणः शरानथ स विंशतिम्। | 4-59-31a 4-59-31b |
ततः शरसहस्रेण रथं पार्थस्य वीर्यवान् । | 4-59-32a 4-59-32b |
एवं प्रववृते युद्धं भारज्वाजकिरीटिनोः ।। | 4-59-33a |
अश्वाञ्शोणान्महावेगान्हंसवर्णैस्तु वाजिभिः । | 4-59-34a 4-59-34b |
रथं रथेन पार्थस्य समाहत्य परंतपः । | 4-59-35a 4-59-35b |
समाश्लिष्टाविवान्योन्यं द्रोणपाण्डवयोर्ध्वजौ । | 4-59-36a 4-59-36b |
तत्तु युद्धं प्रववृते ह्याचार्यस्यार्जुनस्य च। | 4-59-37a 4-59-37b |
तौ वीरौ वीर्यसंपन्नौ दृष्ट्वा समरमूर्धनि। | 4-59-38a 4-59-38b |
उभौ विश्रुतकर्माणावुभौ श्रमगतौ जये। | 4-59-39a 4-59-39b 4-59-39c |
व्यस्मयन्त नराः सर्वे द्रोणार्जुनसमागमे। | 4-59-40a 4-59-40b |
द्रोणं हि समरे कोऽन्यो योद्धुमर्हत्यथार्जुनात्। | 4-59-41a 4-59-41b |
इत्यब्रुवञ्जनास्तत्र संग्रामशिरसि स्थिताः । | 4-59-42a 4-59-42b |
छाद्येतां शरौघैस्तावन्योन्यमुपराजितौ । | 4-59-43a 4-59-43b |
विष्फार्य च महाचापं हेमपृष्ठं दुरासदम्। | 4-59-44a 4-59-44b |
स सायकमयैर्जालैरर्जुनस्य रथं प्रति। | 4-59-45a 4-59-45b |
अर्जुनस्तु तदा द्रोणं महावेगैर्महारथः। | 4-59-46a 4-59-46b |
कालमेघ इवोष्णान्ते फल्गुनः समवाकिरत् ।। | 4-59-47a |
तस्य जाम्बूनदमयैश्चितरैश्चापच्युतैः शरैः। | 4-59-48a 4-59-48b |
तथैव दिव्यं गाण्डीवं धनुरानम्य चार्जुनः । | 4-59-49a 4-59-49b |
शोभते स्म महावाहुर्गाण्डीवं विक्षिपन्धनुः। | 4-59-50a 4-59-50b |
प्राच्छादयदमेयात्मा भारद्वाजरथं प्रति। | 4-59-51a 4-59-51b |
सरथोऽप्यचरत्पार्थः प्रेक्षणीयो महारथः । | 4-59-52a 4-59-52b |
आददानं शरान्घोरान्संदधानं च पाण्डवम् । | 4-59-53a 4-59-53b |
एकच्छायमिवाकाशं बाणैश्चक्रे समन्ततः। | 4-59-54a 4-59-54b |
मरीचिविकचस्येव राजन्भानुमतो वपुः। | 4-59-55a 4-59-55b |
क्षिपतः शरजालानि कौन्तेयस्य महात्मनः । | 4-59-56a 4-59-56b 4-59-56c |
अग्निचक्रोपमं घोरं मण्डलीकृतमाहवे। | 4-59-57a 4-59-57b 4-59-57c |
दिक्षु सर्वासु विपुलः शुश्रुवेऽथ जनैस्तदा। | 4-59-58a 4-59-58b 4-59-58c |
तप्तजाम्बूनदमयैर्दीप्तैरग्निसमैः शरैः। | 4-59-59a 4-59-59b |
ततः काञ्चनपङ्खानां शराणां नतपर्वणाम्। | 4-59-60a 4-59-60b |
शरासनात्तु द्रोणस्य प्रभवन्ति स्म सायकाः। | 4-59-61a 4-59-61b 4-59-61c |
एवं सुवर्णविकृतान्विमुञ्चन्तौ शरान्बहून्। | 4-59-62a 4-59-62b |
तयोः शराश्च विबभुः कङ्कबर्हिणवाससः । | 4-59-63a 4-59-63b |
तत्तु युद्धं महाघोरं तयोः संरब्धयोरभूत्। | 4-59-64a 4-59-64b |
महागजाविवासाद्य विषाणाग्रैः परस्परम्। | 4-59-65a 4-59-65b |
अथ त्वाचार्यमुख्येन शरान्सृष्टाञ्शिलाशितान्। | 4-59-66a 4-59-66b |
दर्शयन्नैन्द्रमात्मानमुग्रमुग्रुपराक्रमः। | 4-59-67a 4-59-67b |
जिघांसन्तं नरव्याघ्रमर्जुनं भीमदर्शनम् । | 4-59-68a 4-59-68b |
हृष्टः समभवद्द्रोणो रणशौण्डः प्रतापवान् । | 4-59-69a 4-59-69b |
तौ व्यदारयतां शूरौ सन्नद्धौ रणशोभिनौ । | 4-59-70a 4-59-70b |
पार्थस्तु समरे शूरो दर्शयन्वीर्यमात्मनः। | 4-59-71a 4-59-71b |
अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य पार्थो द्रोणमवारयत् ।। | 4-59-72a |
तयोरासीत्संप्रहारः क्रुद्धयोर्नरसिंहयोः। | 4-59-73a 4-59-73b |
दर्शयेतां महास्राणि भारद्वाजार्जुनौ रणे ।। | 4-59-74a |
ऐन्द्रं वायव्यमाग्नेयमस्त्रमस्त्रेण पाण्डवः । | 4-59-75a 4-59-75b |
एवं शूरौ महेष्वासौ विसृजन्तौ शिलाशितान्। | 4-59-76a 4-59-76b |
ततोऽर्जुनेन मुक्तानां पततां च शरीरिपु। | 4-59-77a 4-59-77b |
ततो नागा रथाश्वाश्च सादिनश्च विशांपते। | 4-59-78a 4-59-78b |
बाहुभिश्च सकेयूरैर्निकृत्तैश्च महारथैः । | 4-59-79a 4-59-79b |
योधैश्च निहतैस्तत्र पार्थबाणाभिपीडितैः। | 4-59-80a 4-59-80b |
विधृन्वानौ तु तौ वीरौ धनुषी भारसाधने। | 4-59-81a 4-59-81b |
अथान्तरिक्षे नादोऽभूद्द्रोणं तत्र प्रशंसताम् । | 4-59-82a 4-59-82b |
प्रमाथिनं महावीर्यं दृढमुष्टिं दुरासदम्। | 4-59-83a 4-59-83b |
अविभ्रमं च शिक्षां च लाघवं दूरपातनम् । | 4-59-84a 4-59-84b |
तत्प्रवृत्तं चिरं घोरं तयोर्युद्धं महात्मनोः । | 4-59-85a 4-59-85b |
अथ गाण्डीवमुद्यम्य दिव्यं धनुरमर्षणः । | 4-59-86a 4-59-86b |
तस्य बाणमयं वर्षे शलभानामिवाभवत् । | 4-59-87a 4-59-87b |
अभीक्ष्णं संदधानस्य बाणानुत्सृजतस्तथा। | 4-59-88a 4-59-88b |
युद्धे तु कृतशीघ्रास्त्रे वर्तमाने सुदारुणे। | 4-59-89a 4-59-89b |
ततः शरसहस्राणि शराणां नतपर्वणाम्। | 4-59-90a 4-59-90b |
विकीर्यमाणे द्रोणे तु शरैर्गाण्डीवधन्वना ।। | 4-59-91a 4-59-91b |
पाण्डवस्य तु शीघ्रास्त्रं मघवा समपूजयत्। | 4-59-92a 4-59-92b |
द्रोणं युद्धार्णवे मग्नं दृष्ट्वा पुत्रः प्रतापवान्। | 4-59-93a 4-59-93b 4-59-93c |
अश्वत्थामा तु तत्कर्म हृदयेन महात्मनः। | 4-59-94a 4-59-94b |
स भन्युवशमापन्नः पार्थमभ्यद्रवद्रणे । | 4-59-95a 4-59-95b |
आवृत्य च महाबाहुर्यतो द्रोणस्ततोऽभवत्। | 4-59-96a 4-59-96b |
स तु लब्धान्तरस्तूर्णमपायाञ्जवनैर्हयैः । | 4-59-97a 4-59-97b |
पराजिते तदा द्रोणे द्रोणपुत्रः समागतः। | 4-59-98a 4-59-98b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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