महाभारतम्-04-विराटपर्व-054
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सेनामध्ये दुर्योधनमनवलोकयताऽर्जुनेनोत्तरंप्रति तत्पदवीमनु रथयापनचोदना ।। 1 ।। तथा बाणाभ्यां द्रोणाद्यभिवादनपूर्वकं ताभ्यामेव कर्णमूले कुशलप्रश्नः ।। 2 ।। द्रोणेन तत्कौशलश्लाघनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-54-1x |
तथा व्यूढेष्वनीकेषु कौरवेयैर्महारथैः । | 4-54-1a 4-54-1b |
ददृशुस्ते ध्वजाग्रं वै शुश्रुवुश्च रथस्वनम् । | 4-54-2a 4-54-2b |
त्रिकोशमात्रं गत्वा तु पाण्डवः श्वेतवाहनः । | 4-54-3a 4-54-3b |
राजानं नात्र पश्यामि रथानीके व्यवस्थितम्। | 4-54-4a 4-54-4b |
उत्सृज्यैतद्रथानीकं महेष्वासाभिरक्षितम्। | 4-54-5a 4-54-5b |
गवाग्रमभितो गत्वा गाश्चैवाशु निवर्तय । | 4-54-6a 4-54-6b 4-54-6c |
वैशंपायन उवाच। | 4-54-7x |
इत्युक्त्वा समरे पार्थो वैराटिमपराजितः । | 4-54-7a 4-54-7b |
ततोऽभ्यवादयत्पार्थो भीष्मं शान्तनवं कृपम्। | 4-54-8a 4-54-8b |
द्रोणं कृपं च भीष्मं च पृषत्कैरभ्यवादयत्। | 4-54-9a 4-54-9b |
महारथमनुप्राप्तं दृष्ट्वा गाण्डीवधन्विनम् । | 4-54-10a 4-54-10b 4-54-10c |
एतद्ध्वजाग्रं पार्थस्य दूरतः प्रतिदृश्यते। | 4-54-11a 4-54-11b |
आस्थाय च रथं याति गाण्डीवं विक्षिपन्धनुः ।। | 4-54-12a |
अश्वानां स्तनतां शब्दो वहतां पाकशासनिम्। | 4-54-13a 4-54-13b |
दारयन्निव तेजस्वी वसुधां वासवात्मजः । | 4-54-14a 4-54-14b |
श्रीमान्वदान्यो धृतिमान्तत्करोति च पाण्डवः ।। | 4-54-15a 4-54-15b |
रथस्याग्रे निखातौ मे चित्रपुङ्खावजिह्मगौ ।। | 4-54-16a 4-54-16b |
संस्पृशन्तावतिक्रान्तौ पृष्ट्वेवानामयं भृशम् ।। | 4-54-17a 4-54-17b |
अतीव ज्वलते लक्ष्म्या पाण्डुपुत्रः प्रतापवान् ।। | 4-54-18a 4-54-18b |
अभिवादयते पार्थः पूजयन्मामरिंदमः ।। | 4-54-19a 4-54-19b |
अद्येमां भारतीं सेनामेको नाशयते ध्रुवम् ।। | 4-54-20a 4-54-20b |
ज्वलते रथमास्थितः किरीटी तम इव रात्रिजमभ्युदस्य सूर्यः ।। | 4-54-21a 4-54-21b |
खङ्गी च धन्वी च विराजतेऽयं शिखीव यज्ञेषु घृतेन सिक्तः ।। | 4-54-22a |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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