महाभारतम्-04-विराटपर्व-016
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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द्रौपद्या स्वात्मानं कामयमानस्य कीचकस्य परुषभाषणैः प्रत्याख्यानम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-16-1x |
वसमानेषु पार्थेषु मत्स्यस्य नगरे तदा। | 4-16-1a 4-16-1b |
याज्ञसेनी सुदेष्णां तु शुश्रूषन्ती विशांपते । | 4-16-2a 4-16-2b |
तथा चरन्ती पाञ्चाली सुदेष्णाया निवेशने। | 4-16-3a 4-16-3b |
तस्मिन्वर्षे गतप्राये कीचकस्तु महाबलः। | 4-16-4a 4-16-4b |
तां दृष्ट्वा देवगर्भायां चरन्तीं देवतामिव । | 4-16-5a 4-16-5b |
स तु कामाग्निसंतप्तः सुदेष्णामभिगम्य वै। | 4-16-6a 4-16-6b |
नेयं मया जातु पुरेह दृष्टा राज्ञी विराटस्य निवेशने शुभा। | 4-16-7a 4-16-7b |
का देवरूपा हृदयंगमा शुभे ह्याचक्ष्व मे कस्य कुतोत्र शोभने। | 4-16-8a 4-16-8b |
अहो तवेयं परिचारिका शुभा प्रत्यग्ररूपा प्रतिभाति मामियम्। | 4-16-9a 4-16-9b |
प्रभूतनागाश्वरथं महाजनं समृद्धियुक्तं बहुपानयोजनम्। | 4-16-10a 4-16-10b |
ततः सुदेष्णामनुमन्त्र्य कीचकस्ततः समभ्येत्य नराधिपात्मजाम्। | 4-16-11a 4-16-11b |
का त्वं कस्यासि कल्याणि कुतो वा त्वं वरानने। | 4-16-12a 4-16-12b |
रूपमग्र्यं तथा कान्तिः सौकुमार्यमनुत्तमम्। | 4-16-13a 4-16-13b |
नेत्रे सुविपुले सुभ्रु पद्मपत्रनिभेशुभे। | 4-16-14a 4-16-14b |
एवंरूपा मया नारी काचिदन्या महीतले। | 4-16-15a 4-16-15b |
लक्ष्मीः पद्मालया का त्वमथ भूतिः सुमध्यमे। | 4-16-16a 4-16-16b |
अतीव रूपिणी किं त्वमनङ्गविहारिणी। | 4-16-17a 4-16-17b |
अपि चेक्षणपक्ष्माणां स्थितज्योत्स्नोपमं शुभम्। | 4-16-18a 4-16-18b |
निरीक्ष्य वक्रचन्द्रं ते लक्ष्म्याऽनुपमया युतम्। | 4-16-19a 4-16-19b |
हारालंकारयोग्यौ तु स्तनौ चोभौ शुभोभनौ । | 4-16-20a 4-16-20b |
कुड्मलाम्बुरुहाकारौ तव सुभ्रु पयोधरौ। | 4-16-21a 4-16-21b |
वलीविभङ्गचतुरं स्तनभारविनामितम्। | 4-16-22a 4-16-22b |
दृष्ट्वैव चारुजघनं सरित्पुलिनसंनिभम्। | 4-16-23a 4-16-23b |
जज्वाल चाग्निमदनो दावाग्निरिव निर्दयः । | 4-16-24a 4-16-24b |
आत्मप्रदानवर्षेण संगमाम्भोधरेण च। | 4-16-25a 4-16-25b |
मच्चित्तोन्मादनकरा मन्मथस्य शरोत्कराः। | 4-16-26a 4-16-26b 4-16-26c |
प्रविष्टा ह्यसितापाङ्गि प्रचण्डाश्चण्डदारुणाः। | 4-16-27a 4-16-27b 4-16-27c |
चित्रमाल्याम्बरधरा सर्वाभरणभूषिता। | 4-16-28a 4-16-28b |
नार्हसीहासुखं वस्तुं सुखार्हा सुखवर्जिता। | 4-16-29a 4-16-29b |
स्वादून्यमृतकल्पानि पेयानि विविधानि च। | 4-16-30a 4-16-30b |
भोगोपचारान्विविधान्सौभाग्यं चाप्यनुत्तमम्। | 4-16-31a 4-16-31b |
इदं हि रूपं प्रथमं तवानघे निरर्थकं केवलमद्य भामिनि । | 4-16-32a 4-16-32b |
त्यजामि दारान्मम ये पुरातना भवन्तु दास्यस्तव चारुहासिनि । | 4-16-33a 4-16-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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