महाभारतम्-04-विराटपर्व-006
← विराटपर्व-005 | महाभारतम् चतुर्थपर्व महाभारतम्-04-विराटपर्व-006 वेदव्यासः |
विराटपर्व-007 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
पाण्डवैर्धौम्यविसर्जनपूर्वकं विराटनगरसमीपगमनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-6-1x |
तेऽग्निं प्रदक्षिणं कृत्वा ब्राह्मणं च पुरोहितम्। | 4-6-1a 4-6-1b |
युधिष्ठिर उवाच। | 4-6-2x |
अनुशिष्टोस्मि भद्रं ते नैतद्वक्ताऽस्ति कश्चन। | 4-6-2a 4-6-2b |
यदेवानन्तरं कार्यं तद्भवान्वक्तुमर्हति। | 4-6-3a 4-6-3b |
वैशंपायन उवाच। | 4-6-4x |
तेषां प्रतिष्ठमानानां धौम्यो मन्त्रानथाजपत्। | 4-6-4a 4-6-4b 4-6-4c |
याज्ञसेनीं पुरस्कृत्य सर्व एव महारथाः। | 4-6-5a 4-6-5b |
ते वीरा बद्धनिस्त्रिंशा धनुर्बाणकलापिनः । | 4-6-6a 4-6-6b |
उत्तरेण दशार्णानां पाञ्चालान्दक्षिणेन तु। | 4-6-7a 4-6-7b |
ते तस्या दक्षिणं तीरमन्वगच्छन्पदातयः । | 4-6-8a 4-6-8b |
वसाना वनदुर्गेषु रमणीयेषु धन्विनः । | 4-6-9a 4-6-9b |
द्रुमान्नानाविधाकारान्नानाविधलताकुलान् । | 4-6-10a 4-6-10b |
पार्था निरीक्षमाणाश्च तान्द्रुमान्पुष्पशालिनः। | 4-6-11a 4-6-11b |
विध्यन्तो मृगजातानि महेप्वासा महाबलाः । | 4-6-12a 4-6-12b 4-6-12c |
तत्र धौम्यं महेप्वासाः पाण्डवेया व्यसर्जयन् । | 4-6-13a 4-6-13b |
ततस्तेषु प्रयातेषु पाण्डवेषु महात्मसु। | 4-6-14a 4-6-14b 4-6-14c |
ततो जनपदं प्राप्य कृष्णा राजानमब्रवीत् ।। 15 ।। | 4-6-15a |
पश्यैकपद्यो दृश्यन्ते क्षेत्रे गोष्ठं समाश्रिताः । | 4-6-16a 4-6-16b |
व्यक्तं दूरे विराटम...राजधानी भविष्यति। | 4-6-17a 4-6-17b |
युधिष्ठिर उवाच। | 4-6-18x |
इमां कमलपत्राक्षीं द्रौपदीं माद्रिनन्दन। | 4-6-18a 4-6-18b |
ततोऽदूरे विराटस्य नगरं भरतर्षभ । | 4-6-19a 4-6-19b |
नकुल उवाच। | 4-6-20x |
पूर्वाह्णे मृगयां कृत्वा मया विद्धा मृगा वने। | 4-6-20a 4-6-20b |
विषमा ह्यतिदुर्गा च वेगवत्परिधावता। | 4-6-21a 4-6-21b |
युधिष्ठिर उवाच। | 4-6-22x |
सहदेव त्वमादाय मुहूर्तं द्रौपदीं नय। | 4-6-22a 4-6-22b |
सहदेव उवाच । | 4-6-23x |
अहमप्यस्मि तृषितः क्षुधया परिपीडितः। | 4-6-23a 4-6-23b |
युधिष्ठिर उवाच । | 4-6-24x |
एहि वीर विशालाश्च वीरसिंह इवार्जुन । | 4-6-24a 4-6-24b |
परिगृह्य मुहूर्तं त्वं बाहुभ्यां कुशलं व्रज । | 4-6-25a 4-6-25b |
वैशंपायन उवाच। | 4-6-26x |
गुरोर्वचनमाज्ञाय संप्रहृष्टो जितेन्द्रियः। | 4-6-26a 4-6-26b 4-6-26c |
जटिलो वल्कलधरः शततूणीधनुर्धरः। | 4-6-27a 4-6-27b |
आनीय नगराभ्याशमवातारयदर्जुनः ।। 27 ।। | 4-6-28a |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
विराटपर्व-005 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | विराटपर्व-007 |