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( ६ ) श्री लक्ष्मीनारायण तिवारी ( सदस्य तथा संयोजक ) ( पुस्तकाध्यक्ष
सरस्वतीभवन, सम्पूर्णानन्द संस्कृतविश्वविद्यालय, वाराणसी)
संयोजक श्रीलक्ष्मीनारायण तिवारी के सतत प्रयत्न से समिति ने बड़ी
तत्परता से प्रकाशनार्ह ग्रन्थों का चयन करके उसके प्रकाशन की तत्काल व्यवस्था
धरम्भ की।
सिद्धान्तशिरोमणि प्रसिद्ध ज्योतिर्विद भास्कराचार्य की ऐतिहासिक और
मौलिक कृति है। इसका वासनाभाष्य भी उन्हीं का रचा है। श्रीनृसिंह नामक
सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद् का इस भाष्य पर रचा गया वार्त्तिक अपनी अपूर्व प्रभा से मूल और
भाष्य दोनों के भावों को अभिव्यक्त करता हुआ ग्रन्थ की महत्ता को बढ़ाता है । इस
ग्रन्थ का भाष्य और वात्तिक के साथ एकत्र सम्पादन और प्रकाशन न होना ज्योतिष-
जगत् के लिये अन्धकार सा प्रतीत होता था और यह न्यूनता ज्योतिषमनीषियों को
खलती थी । इसके अभाव में ज्योतिषशास्त्र के गूढ़ सिद्धान्त विद्वानोंकी प्रतिभा तक
पहुँच नहीं पाते थे, जिससे प्रकाण्ड ज्योतिषियों के चित्त भी दुःखी थे । इसलिये यह
विश्वविद्यालय इस न्यूनता के निराकरण के लिये किसी योग्य विद्वान् की खोज में था ।
मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि विश्वविद्यालय ने श्रीमुरलीधर चतुर्वेदी जैसा योग्य विद्वान्
ढूंढ लिया, जो इस कार्य को बुद्धिमत्ता एवं उत्साह के साथ सम्पन्न कर सके । फलत
इस कार्य का भार श्रो चतुर्वेदी को दिया गया। श्री चतुर्वेदी ने, जो कि इस विश्व-
विद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में पर्याप्त ग्रन्थों का ज्ञानार्जन कर चुके हैं,
सहर्ष इस दायित्व को स्वीकार किया और उत्साहपूर्वक इसके सम्पादन में
प्रवृत्त हुए ।
आज प्राचीन और अर्वाचीन दोनों दृष्टियों से कुशलतापूर्वक सम्पादित होकर
यह ग्रन्थ प्रकाशनयोग्य हुआ और इसके प्रकाशन से विश्वविद्यालय ज्योतिषविद्या को
सर्वसाधारण के लिये सुलभ कर अत्यन्त हर्षित है ।
मैं इस ग्रन्थ के सम्पादन और अपनी विस्तृत टिप्पणी के संयोजन के लिये
श्री चतुर्वेदी की प्रशंसा करते हुए परम प्रमोद का अनुभव करता हूँ ।
वाराणसी
गुरुपूर्णिमा
२०३७ वेक्रमाब्द
(२७. ७. १९८० रविवार)
बदरीनाथ शुक्ल
कुलपति
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय
पृष्ठम्:Siddhānta Śiromaṇi, Sanskrit.djvu/८
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