( २१ ) नृसिंह ज्योतिष शास्त्र के इतिहास में दो नृसिंह नाम के विद्वानों की प्रसिद्धि है। प्रथम गणेशदैवज्ञ के भाई तथा राम के पुत्र हैं । ये नन्दि गाँव निवासी थे। इन्होंने १४८० शक में ‘मध्यग्रह सिद्धि’ नामक ग्रन्थ की रचना की है, ऐसा म० म० सुधाकर द्विवेदी जी ने गणक तरङ्गिणी में कहा है । १ द्वितीय नृसिंह वासना वार्त्तिककार इन्होंने जन्मादि के विषय में वासना वात्तिक के अन्त में कहा है। जैसे- गुणवेदशरेन्दुसम्मिते शककाले नगरे पुरेशितुः । वसता वरुणासिमध्यगे नरसिंहेन विनिर्मितं त्विदम् ॥ निजे तत्त्वमिते वर्षे सौरभाष्यं मया कृतम् । वर्षे वासनावात्तिकं कृतम् ॥ २. पञ्चत्रंशन्मिते इससे सिद्ध होता है कि २५ वर्ष की अवस्था में प्रथम सूर्य सिद्धान्त की टीका का निर्माण करके ३५ वर्ष की आयु में इन्होंने सिद्धान्तशिरोमणि की वासना वात्तिक नाम से टीका १५४३ शक में वाराणसी में निवास करके की है। इसलिए इनका जन्म शक १५४३-३५ = १५०८ होता है । ये महाराष्ट्रीय ब्राह्मण कृष्णदैवज्ञ के पुत्र, दिवाकर के पिता, शिव के बड़े भाई थे । इन्होंने अपने पिता कृष्ण तथा विष्णु मल्लारि चाचाओं से विद्या ग्रहण की थी । आप गोदावरी नदी के उत्तर तटस्थ गोलगाँव के रहने वाले थे। ऐसा इन्होंने वासना वार्तिक के अन्त में कहा है । जैसे- “गोदावरी सौम्यतटोपकंठग्रामे च गोलेऽभिधया प्रसिद्ध " वंशपरम्परा राम - भट्टाचार्य I १. भा० ज्यो० ३७७ पृ० । ३. सि०शि० ५३६ पृ० । दिवाकर I कृष्ण, विष्णु, मल्लारि, केशव, विश्वनाथ 1 नृसिंह, शिव दिवाकर, कमलाकर, गोपीनाथ, रङ्गनाथ २. सि० शि० ५३६ पृ० । ४. भा०. ज्यो० ३८५ पृ० ।