पृष्ठम्:Siddhānta Śiromaṇi, Sanskrit.djvu/२८

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( २० ) टीका वर्तमान में इस गणित-गोल-अध्यायरूपी ग्रन्थ की निम्न टीकाएँ उपलब्ध होती हैं :- १. मुनीश्वर की मरीचि, २. गणेश दैवज्ञ की शिरोमणि प्रकाश, ३ नृसिंह की वासनावात्तिक, ४. बापूदेव शा. का संशोधन, ५ बुद्धिनाथ झा का टिप्पणी विवरण, ६. केदारदत्त जी जोशी की गणिताध्याय की दीपिका व शिखा, ७. दुर्गा प्रसादजी की हिन्दी टीका प्राप्त होती है । ० आफ० सूची के आधार पर ८. लक्ष्मीदास की गणितत्त्वचिन्तामणि, ९. विश्व- नाथ की उदाहरणात्मिका, १०. राजगिरि प्रवासी की ११. चक्र चूणामणि की १२. महेश्वर की, १३. मोहनदास की, १४. लक्ष्मीनाथ की और १५. वाचस्पति मित्र की टीका का उल्लेख है । सैद्धान्तीय विशेषता आर्य वराह-ब्रह्मगुप्त- लल्लाचार्य आदि विद्वानों ने उदयान्तर कर्म का प्रतिपादन नहीं किया था । इसलिए बहुत से दैवज्ञों का मत था कि भास्कराचार्य ही इस कर्म के प्रथम निर्माता हैं, किन्तु सिद्धान्तशेखर के प्रकाशन से स्पष्ट ज्ञात होता है कि प्रथम इस कर्म का सृजनकर्ता श्रीपति ही था। क्योंकि सिद्धान्तशेखर ग्रन्थ के युद्धारम्भ में प्रथम उदयान्तर का सूत्र अलब्ध होता है, फिर भी भास्कराचार्य जी ने उद्यान्तर कर्म सम्बन्धी विशेषताओं का वर्णन किया है इसे प्रायः सब ही. मानते हैं । सिद्धान्तग्रन्थों से विशेष बात १. ज्याचाप के लिए भोग्य खण्ड का स्पष्टीकरण, २. ग्रहगति, ३ इच्छा दिक् छाया, ४. सूर्य चन्द्र का कला कर्ण, ५. योजनात्मक करण का स्पष्टीकरण; ६ सूर्य चन्द्र का योजन बिम्ब, ७. सूर्य चन्द्र का कलात्मक बिम्ब साधन. ८. स्थि विमर्द साधन, ९. सकृत् विधि से लम्बन का आनयन, १०. चन्द्रगोल सन्धि का वर्णन, ११. लग्नार्थ सूर्य का तात्कालिकीकरण, १२. सदोदित नक्षत्रों का विवेचन, १३. भूपृष्ठ फलानयन, १४. लल्लोक्त राशि दृश्यादृश्य का खण्डन, १५. भूपृष्ठीत्र छापानयन, १६. फलक यन्त्र का वर्णन, १७. शङ्कत्रितय से दिक् देशादिका ज्ञान, १८. चापों की योगान्तरज्या का ज्ञान आदि विशेषता अन्य सिद्धान्त ग्रन्थों से हैं ।