पृष्ठम्:Siddhānta Śiromaṇi, Sanskrit.djvu/२०

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॥ श्रीहनुमते नमः ॥
भूमिका
सिद्धान्तज्योतिर्गतमहमालोकं यदाशिषा
प्रापं परमं श्रीगुरुमवधबिहारित्रिपाठिनं
देव्याः श्रीसङ्कटाख्यायाः प्रसादमदृशं
श्रीसङ्कटाप्रसादं वै गुरुं वन्दे
किश्चित् ।
वन्दे ॥ १ ॥
वरम् ।
यशस्करम् ॥२॥
इस विषय को तो समस्त भारतीय मनीषी स्वीकार करते हैं कि इस संसार
में जन्म लेने वाले जीवों का सब प्रकार से कल्याण मार्ग का प्रदर्शक वेद ही है । समग्र
भारतीय विज्ञान वेद में ही उपलब्ध है. इसे भारतीय तथा विदेशी विद्वान् सब ही
मानते हैं । इसका यथार्थ से अन्वेषण करने पर ज्ञात होता है कि वेद में कोई भी
विषय अनुपलब्ध नहीं है ।
१. वेदशास्त्र के ज्ञान प्रवर्तक [ शिक्षा, २. कल्प, ३. व्याकरण, ४. ज्योतिष,
५. निरुक्त, ६. छ्न्द ] अङ्गशास्त्र हैं ।
श्रीभास्कराचार्य जी ने इन ६ अङ्गों का वेद पुरुष के शरीरावयव में निम्न
प्रकार से न्यास किया है। उनकी सूक्ति-
शब्दशास्त्रं मुखं ज्यौतिषं चक्षुषी
श्रोत्रमुक्तं निरुक्तञ्च कल्पः करौ ।
या तु शिक्षास्य वेदस्य सा नासिका

पादपद्मद्वयं छन्दआद्यैर्बुधः ॥"
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१. व्याकरण = मुख । २. ज्योतिष = आँख । ३. निरुक्त = कान | ४. कल्प =
हाथ । ५. शिक्षा = नाक और दोनों पैर = छन्द हैं ।
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इस कथन से पता चलता है कि षडङ्गों में ज्योतिष शास्त्र का भी स्थान है।
यहाँ पर यह जिज्ञासा होती है कि ६ अङ्गों में ज्योतिष को क्यों गिना जाता है, इस
प्रश्न का उत्तर भी आचार्य भास्कर ने स्वयं ही दे दिया है । यथा-
१. सि० शि० ग्र० ग० का० मा० १० श्लो० ।