पृष्ठम्:Advaita Siddhi with Guru Chandrika vyakhya.djvu/१२००

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सं. पु. 3 85 शास्त्रफलं प्रयोक्तार – जै. सू. 3-7-18 2 328 शास्त्रस्था वा — जै. सू. 1-3-9 2 234 शास्त्रं शब्दार्थविज्ञानान् शाबर भाष्यम् 1-1-5 1 379 1 351 2 211 2 1 1 1 3 1 2 1 3 2 1:31 265 264 233 87 16:3 194 शिवमद्वैतम्-प्रश्न. 7 शिष्टाकोप-जं. सू. 344 शुक्लं कृष्णम् – बृ. वा. 1-3-5 शि सर्वनामस्थानम् - पा. सू. - 1-5--119 शुद्धं (निरूपाधि) ब्रह्मेति कल्प. 1--1-1 श्रुतिलिङ्गवाक्य - जै. सु. 3-3 14 - श्रुतेर्जाताधिकार: जे. सु. 3-3-1 शृण्वन्तः श्रेत्रेण बृ. 6-1-8 श्येनेन ( अभिचरन् ) यजेत -- ? श्रोतव्यो मन्तव्यः - बृ. 2-4-5 1 92 2 211 1 461 1462 1 462 षड्डिशतिश्चतुर्विंशदेषाम् ? 1 463 षड्विंशतिरस्य वङ्कयः- - ? 2 226 षोडशिनं गृहाति — ? 2 211 7 षडिशतिर्वाजिनः डिशतिरित्येव - ? - 1-1-12 षडस्माकमनादयः- ? षड्भ्यो लुक् – पा. सू. 7--1-22 ष्णान्ता षट्-पा. सू. 1-1-24 (स) 83 स एवाधस्थात्-छा. 7-25-1 61 स एवेदं सर्वम् – छा. 7-25-1 117 स एष इह प्रविष्ट: - वृ. 1-17