सं. पु. 1 323 यूपे पशुं बध्नाति - ? 2 293 यू स्त्रधाख्यौ नदी – पा. सू. 2 211 येन विधिः - पा. सू. 1 2 3 2 2 3 1 3 229 1 2 1 1-1-72 455 येनाश्रुतं श्रुतं भवति – छा. 229 येनाक्षरं पुरुषं वेद-मु. उ. 98 ययं प्रते विचिकित्सा- कठ 69 3 ·20 यो विज्ञान तिष्ठन् – बृ. 3 87 यो वंदेदं जिघ्रा गीति-छा. 1 443 1 :328 1-4-3 6-1-3 9 योऽपि तावत् - श्लो. वा. 112 261 योऽन्यथा सन्तमात्मालम्-वार्तिकसारः 2-4 - 100 6 योनिश्च हि गीयंत – ब्र. सू योऽयं दक्षिणेऽक्षिणि — बृ. 69 योऽसौ व्यक्तत्वम्-मोक्ष ( सो ) योऽहंकार - मोक्ष 1-2-13 1--1-20 -2.50 पुट 1-1-27 5-5-4 9-49--30
- 349-:3 )
6-7-22 8-12-4 यो वै धर्मः सत्यं वै तत् बृ. 1-1-14 यो त्राश्वं प्रतिगृह्णाति तै. सं. 2-3-12 (२) 2 347 रज्जुसर्पादिवद्विश्वम् - " 2 350 रमणीयचरणाः --छा. 5-10--7 2 326 रूपमेतदनन्तस्य - वि. पु. 2-19-47 रूपं रूपं प्रतिरूपः- 2-5-19 2 302 -- 2 :304 रूपं रूपं मघवा वो भवति - ऋ. सं. :3-3-20 (ल) 262 32 217 लिङ्गज्ञानसंस्कारयोः- पञ्चपा A. VOL III. लसितं विचक्षण-? लक्ष्यस्वरूपमपि-सं. शा. 1-5-16 16